Sunday 12 July 2020

विकास दुबे प्रकरण का साइड इफेक्ट- थोड़ा सकुचाया सा जातिवाद खुलकर मूंछों पर ताव देने लगा

Side effect of Vikas Dubey episode-Slightly hesitant Casteism, began to sharpen its mustache



ब्राह्मण जाति के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कानपुर के विकास दुबे प्रकरण में अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा- मरने वाले ब्राह्मण, मारने वाले ब्राह्मण, मुखबिरी करने वाले ब्राह्मण, शह देने वाले ब्राह्मण तो फिर इस प्रकरण में जातिवाद कहां से आ गया? यह बिल्कुल समझ से परे है।

वरिष्ठ पत्रकार ने बिल्कुल उचित ही लिखा, लेकिन ब्राह्मण जाति के कुछ लोग और उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय विपक्षी दलों को तथ्यों से ज्यादा मतलब नहीं हैं। एक तरफ ब्राह्मण जाति के कुछ लोग विकास दुबे जैसे अपराधी के मरने पर भी बहुत दुखी और नाराज हैं तो दूसरी तरफ प्रदेश के विपक्षी दल कुछ ब्राह्मणों की इस नाराजगी को हवा देने की जी-जान से कोशिश में जुटे हैं। उनकी कोशिश है कि विकास दुबे प्रकरण के बहाने 2022 के चुनाव की गोटी फिट कर ली जाए और कथित अत्याचार के बहाने ब्राह्मणों को अपने-अपने खेमे में लाया जाए।

इसी कोशिश में सोशल मीडिया पर एक सूची घूम रही है जिसमें यह दर्शाया गया है कि प्रदेश में वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान ब्राह्मण जाति के कितने लोगों की हत्याएं हो गईं। सूची के साथ यह भी लिख दिया जाता है कि ये सभी राजनैतिक हत्याएं हैं और राज्य सरकार के इशारे पर हो रही हैं या उसके राज में हो रही हैं या ये हत्याएं इसलिए हुईं क्योंकि जिनकी हत्या हुई वे ब्राह्मण जाति के थे। नीचे इसी सूची का चित्र दिया गया है-

इस सूची को देखने से पता चलता है कि सूची बनाने वालों को इससे कोई मतलब नहीं है कि किसी व्यक्ति की हत्या क्यों हुई? रंजिश में हुई, घरेलू विवाद में हुई, किसी आपराधिक वारदात के दौरान हुई या अन्य किसी कारण से हुई? उन्होंने बस प्रदेशभर में जहां-जहां भी कोई मरा, उनमें से ब्राह्मण जाति को खोजकर लिस्ट तैयार कर दी। 

अब आइए, ब्राह्मण जाति के लोगों की हत्याओं की इस सूची में शामिल कुछ हत्याओं पर सूक्ष्म नजर डालते हैं। चूंकि मैं मेरठ में रहता हूं तो मेरठ के बारे में अच्छी तरह से बता सकता हूं। मेरी नजर इस सूची में शामिल मेरठ में हुई कुछ हत्याओं पर गई। इन्हीं में से एक हत्या अधिवक्ता मुकेश शर्मा की है।

मेरठ में 19 अक्टूबर 2019 को अधिवक्ता मुकेश शर्मा की हत्या हुई थी, जब वे शाम को अपने घर से अकेले टहलने निकले थे। चूंकि वकील की हत्या से जु़ड़ा मामला था तो वकीलों ने भी इस हत्या पर खूब नाराजगी जाहिर की और हंगामा किया, जिस पर शासन से भी मामले के जल्द खुलासे का आदेश आया। यह हत्या भी ब्राह्मण जाति पर इस कथित अत्याचार वाली सूची में दर्ज है। 

हकीकत यह सामने आई कि यह हत्या करोड़ों रुपये कीमत वाली एक जमीन के विवाद को लेकर हुई। पुलिस ने बहुत जल्द पांच आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया। गिरफ्तार आरोपित ओमकार, अधिवक्ता मुकेश शर्मा का भतीजा ही निकला। अन्य आरोपी योगेश, चेतन, नौशाद और जुबेर पाए गए। इनमें चेतन, मुकेश शर्मा का चाचा है। पता चला कि ओमकार ने अपनी जमीन जुबेर और नौशाद को बेची थी, लेकिन मुकेश शर्मा उस पर कब्जा नहीं दे रहे थे। इसी प्रकार चेतन का भी दावा था कि उसकी 49 बीघा जमीन मुकेश शर्मा ने कब्जा रखी थी। भतीजे ओमकार को यह भी शक था कि उसके पिता लोकेश की हत्या भी मुकेश शर्मा ने कराई थी। मुकेश शर्मा की हत्या को अंजाम नासिर नाम के बदमाश ने अंजाम दिया था। 10 हजार के इनामी नासिर को कुछ दिन बाद दिल्ली में ओखला से गिरफ्तार किया गया। अब बताइए, इस हत्या को आप राजनीतिक हत्या कहेंगे?

मेरठ में ही 7 मई 2020 को एक हत्या अनुज शर्मा की बताई गई है और सूची को बड़ा करने के लिए इसे दो बार लिखा गया है। इसी प्रकार 20 मई 2020 को मेरठ के परतापुर में हिमांशु शर्मा की हत्या दर्शाई गई है और सूची को बड़ा करने के लिए इसे भी दो बार लिखा गया है।

सूची में 18 अक्टूबर 2019 को लखनऊ में हुई हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की चर्चित हत्या भी शामिल की गई है। उल्लेखनीय है कि कमलेश तिवारी को मुस्लिम कट्टरपंथियों ने मारा था।

इस प्रकार यदि हम सूची की गहन पड़ताल करेंगे तो हम पाएंगे कि हत्याएं हुई हैं और ये सभी हत्याएं अत्यंत दुखद हैं, लेकिन यह हरगिज नहीं कहा जा सकता है कि ये हत्याएं ब्राह्मण जाति के लोगों पर अत्याचार होने का संकेत देती हैं। अगर इसी प्रकार से सूची बनाने का पैटर्न अपना लिया जाए तो कोई यादव, कोई दलित, कोई मुस्लिम, कोई जाट, कोई गुर्जर या अन्य किसी भी जाति का कोई व्यक्ति पिछले कुछ अरसे में हुई हत्याओं में अपने समाज के लोगों के नाम ढूंढने बैठ जाए तो इसी प्रकार की सूची सभी जातियों में तैयार हो सकती है, जिस प्रकार की सूची विकास दुबे प्रकरण के बाद ब्राह्मण जाति के लोगों की हत्याओं की बनाई गई है।

बढ़ते अपराध का विरोध होना चाहिए। कोई अपराध हुआ तो उसके खुलासे की मांग होनी चाहिए, लेकिन किसी के जले घर में हमें जातिवाद की खिचड़ी नहीं पकानी चाहिए। इस लिस्ट में कुछ हत्याएं सामूहिक भी हुई हैं। उनके सही खुलासे की मांग करनी चाहिए। पुलिस खुलासा नहीं करती है या लीपापोती करती है तो उसका विरोध करना चाहिए, लेकिन सारी हत्याओं को एक ही डंडे से हांकने का अनपढ़ों जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए।

यह राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी है कि यदि आज कुछ ब्राह्मणों को यह लग रहा है कि उनकी जाति के लोगों के साथ अत्याचार हो रहा है तो सरकार के जिम्मेदार लोगों को एक-एक मामले को लेकर लोगों के साथ संवाद करना चाहिए और यदि किसी हत्याकांड में वाकई जातिवाद जैसा कारण जिम्मेदार है तो कठोर कार्रवाई करके उसका उचित निदान करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं भी है तो लोगों की गलतफहमी को दूर करने का काम भी सरकार का ही है।

हम जानते हैं कि यह सब कुछ विकास दुबे प्रकरण का साइड इफेक्ट है। उत्तर प्रदेश में 2022 में चुनाव हैं तो जातिवाद का जहर फैलाने की ये कोशिशें रुकेंगी नहीं। इस जहर को फैलाने में सोशल मीडिया पर उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी पीछे नहीं हैं। लेकिन हमें एक नागरिक के तौर पर जान लेना चाहिए कि यदि विकास दुबे के मारे जाने पर ब्राह्मण, मुख्तार अंसारी या अतीक अहमद के खिलाफ एक्शन होने पर मुस्लिम, त्रिभुवन सिंह या ब्रजेश सिंह के खिलाफ एक्शन होने पर ठाकुर, उधम सिंह या योगेश भदौड़ा के खिलाफ एक्शन होने पर जाट और इसी प्रकार किसी और अपराधी के मारे जाने पर अन्य जातियों के लोग नाराज या दुखी होने लगेंगे तो फिर समाज या राजनीति को अपराध से मुक्त होने का सपना देखना छोड़ दीजिए। अपराध होने की शिकायत करना छोड़ दीजिए। व्यवस्था में किसी प्रकार के सुधार की उम्मीद छोड़ दीजिए। अपराधियों और अव्यवस्थाओं के साये में डर-डरकर, घुट-घुटकर रहना सीख लीजिए। जातिवाद ने इस देश और प्रदेश का बहुत नुकसान किया है। अब अपने देश और समाज पर रहम करिए। अपनी जाति की पहचान अपराधियों से नहीं अपनी जाति के महान नेताओं, स्वतंत्रता सेनानियों, प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, उच्च अधिकारियों, खिलाड़ियों आदि से करिए। अपनी जाति को अपराधियों से जोड़कर देखने के किसी भी प्रयास को सफल मत होने दीजिए।

-लव कुमार सिंह

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लेख के बाद में हुआ डेवलपमेंट......इसे भी पढ़ें

पुलिस ने 2 जुलाई 2020 को प्रयागराज में ब्राह्मण परिवार के कई लोगों के वीभत्स हत्याकांड का खुलासा 19 जुलाई 2020 को कर दिया। पुलिस ने जो लोग गिरफ्तार किए हैं वे हैं- सारिक पुत्र रफीक, शाहरुख पुत्र अली, डाबर पुत्र अशरफ, वारिश खान पुत्र जफर और फरमान पुत्र आलमदीन। ये सभी निवासी थाना पटवारी, जिला रामपुर के रहने वाले हैं और 'छेमार गिरोह' के सदस्य हैं जो पिछले डेढ़ महीने से भीख मांगने के बहाने इलाके की रेकी कर रहे थे। मौका लगते ही इन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया। इन क्रूर अपराधियों के पास से हत्या में प्रयुक्त हथियार और लूटी गई नकदी आदि बरामद कर ली गई है। 

(अब बताइये, क्या आप इसे जातिवाद के परिणामस्वरूप हुई हत्याएं कहेंगे?)

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