Sunday 5 July 2020

2015 की फिल्म ‘मोहम्मद- द मैसेंजर ऑफ गॉड’ का इस समय विरोध क्यों हो रहा है?

Why is the 2015 film 'Mohammed - The Messenger of God' being opposed at this time?


 

रविवार 5 जुलाई 2020 को ट्विटर पर नजर पड़ी तो देखा कि वहां पर #BoycottMovieOfProphet टॉप ट्रेंड कर रहा है। इसके बाद 12 जुलाई 2020 को फिर से इस ट्रेंड ने जोर पकड़ा। इस ट्रेंड के तहत मुस्लिम समाज के लोग एक फिल्म का विरोध कर रहे हैं जिसका नाम ‘मोहम्मद- द मैसेंजर ऑफ गॉड है। दरअसल यह एक ईरानी फिल्म है जो 2015 में बनी थी और इसे माजिद मजीदी ने निर्देशित किया था जबकि इसके लेखक माजिज मजीदी, हामिद अमजद और कांबुजिया पैट्रोवी हैं। 

यह फिल्म छठी शताब्दी में सेट है और इसकी कहानी मोहम्मद साहब के बचपन के इर्द-गिर्द घूमती है। यह ईरानी सिनेमा की अब तक की सबसे बड़ी बजट की फिल्म है। इसके निर्माण की शुरुआत 2007 से हुई थी और मजीदी ने इसके स्क्रीनप्ले का पहला ड्राफ्ट 2009 में लिखा था। 2011 में शुरू हुई फिल्म की शूटिंग तेहरान के निकट स्थित शहर कोम और दक्षिण अफ्रीका में की गई थी। 

फिल्म निर्माण के दौरान इतिहासकारों और पुरातत्वेत्ताओं की टीम भी मजीदी के साथ रहती थी क्योंकि फिल्म का विषय बेहद संवेदनशील विषय था। फिल्म का पोस्ट प्रॉडक्शन 2013 में म्यूनिख में हुआ और 2014 में फिल्म पूरी हुई। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी विट्टोरियो स्टोरारो ने की थी। ध्यान देने की बात यह है कि फिल्म का म्यूजिक भारतीय संगीतकार एआर रहमान ने दिया था।

फिल्म का प्रीमियर 12 फरवरी 2015 में हुआ। 27 अगस्त 2015 में ईरान और मॉंट्रियल वर्ल्ड फिल्म फेस्टिवल में एक साथ रिलीज की गई थी। 88वें एकेडमी अवार्ड में इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म चुना गया था। विकीपीडिया के अनुसार इस फिल्म में मोहम्मद साहब की नजरों से उनके जन्म से 13 वर्ष की आयु तक इस्लाम से पहले की अरब दुनिया का चित्रण किया गया है।

2015 में भी फिल्म की रिलीज से पहले इसका व्यापक विरोध हुआ था। यह विरोध सुन्नी अरब देशों से शुरू हुआ था। मिस्र की अल अजहर यूनिवर्सिटी ने ईरान से इस फिल्म को बैन करने को कहा था। सऊदी अरब के ग्रैंड मुफ्ती अब्दुल अजीज इब्न अब्दुल्ला अल शेख और सऊदी मुस्लिम वर्ल्ड लीग ने फिल्म की निंदा की। भारत में बरेलवी रजा अकादमी ने फिल्म के निर्देशक माजिद मजीदी और म्यूजिक कंपोजर एआर रहमान के खिलाफ फतवा भी जारी किया था। साथ ही फिल्म पर प्रतिबंध की भी मांग की थी। दूसरी तरफ इस फिल्म को समीक्षकों की काफी सराहना मिली थी। फिल्म ईरान में भी काफी देखी गई थी।

इस फिल्म के निर्माता मोहम्मद मेहंदी, हैदरियान, मोहम्मद रजा साबेरी और माजिद मजीदी ने इस फिल्म के दो सीक्वल बनाने की भी योजना बनाई थी। पहले सीक्वल में मोहम्मद साहब की किशोरावस्था से 40 वर्ष तक के जीवन के चित्रण की योजना थी जबकि दूसरे सीक्वल में 40 वर्ष की आयु से मोहम्मद साहब के इस्लाम का पैगंबर बनने तक की कहानी दिखाने की योजना थी।  

लेकिन सवाल यह है कि 2015 की फिल्म का बायकॉट ट्विटर पर अब क्यों टॉप ट्रेंड कर रहा है? दरअसल डॉन (DON) इन्फोटेनमेंट या डॉन सिनेमा जैसे ओटीटी प्लेटफार्म पर यह फिल्म रिलीज हो रही है, इसलिए इसका अब विरोध किया जा रहा है। खास बात यह है कि डॉन सिनेमा को एक मुस्लिम प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर महमूद अली ने ही 2020 की शुरुआत में दिल्ली के लैंड बैंकर सतीश कुमार और भारतीय क्रिकेट टीम के फिजियोथेरेपिस्ट अली ईरानी के साथ पार्टनरशिप में लांच किया था। महमूद अली ने 2004 में पैन एन कैमरा इंटरनेशनल के नाम से कंपनी बनाई थी। 2007 में वह डिस्ट्रीब्यूटर बन गए थे। आज अली की कंपनी फिल्म इंडस्ट्री की प्रमुख डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों में से एक है। इसकी उपस्थिति मलेशिया, लंदन और अन्य अनेक देशों में भी है।

इस फिल्म के बारे में ट्विटर पर मुस्लिम यूजर मुख्यतः यह बात कह रहे हैं कि वे अपने धर्म के बारे में सब कुछ जानते हैं और उन्हें मोहम्मद साहब पर किसी फिल्म की जरूरत नहीं है। उनका यह भी कहना है कि यह इस्लाम को नीचा दिखाने की कोशिश है। मोहम्मद साहब पर किसी भी प्रकार की फिल्म को वे सहन नहीं करेंगे। उधर, इस ट्रेंड पर कुछ दूसरे धर्म के लोग भी प्रतिक्रिया कर रहे हैं। उनका कहना है कि अब फ्रीडम ऑफ स्पीच का क्या? खास बात यह है कि प्रतिक्रिया जताने वाले ज्यादातर लोगों ने फिल्म देखी नहीं है, लेकिन जैसा कि धार्मिक विषयों पर बनी फिल्मों के बारे में होता है, लोग बिना देखे ही विरोध शुरू कर देते हैं। खासकर इस फिल्म के बारे में तो मुस्लिम समाज के लोगों का कहना है कि इसे देखने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि मोहम्मद साहब पर फिल्म बनाई ही नहीं जा सकती है।

- लव कुमार सिंह


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