The prime time debate on TV has a unique effect in the drawing room
करीब 70 साल के रामपाल सिंह पुलिस विभाग में थे। अब वे विपक्ष में हैं। सत्ताधारी दल से बहुत नाराज हैं। शाम के छह-सात बजे से लेकर रात के नौ बजे तक टीवी पर होने वाली बहसों को देखना उनका प्रिय टाइमपास है। लेकिन टीवी की बहसें देखते-देखते उनका टीवी देखने का ढंग एकदम निराला हो गया है। टीवी के अंदर किसी कार्यक्रम को एंकर नियंत्रित करता है, लेकिन अपने कमरे में रामपाल सिंह भी टीवी की बहस को अपने नियंत्रण में लेने का पूरा प्रयास करते हैं।
ऐसे ही एक दिन टीवी पर प्राइम टाइम में बड़ी बहस चल रही थी। रामपाल सिंह रात का भोजन निपटाकर कमरे में अकेले टीवी के सामने जमे थे। बगल के कमरे में उनका पौत्र रवि बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहा था, मगर इस वक्त उसने किताब अलग रख दी थी। टीवी की आवाज इतनी तेज थी कि कार्यक्रम के खत्म होने तक पढ़ना संभव नहीं था। रवि भी अपनी जगह बैठा कार्यक्रम सुनने लगा।
“...तो मैं कह रहा था कि इस मामले में जितना हमारी पार्टी ने किया, उतना तो कोई भी नहीं कर पाया।" बहस के दौरान एक नेता जी अपना पक्ष रख रहे थे।
“ओए-ओए, क्यूं बकवास कर रा है...क्या हम नहीं जानते?" दादा जी ने कमरे से ही विरोध किया।
“जो मैं झूठ बोल रहा होऊं तो आप मुझे कोई भी सजा दे सकते हैं।” नेता जी फिर बोले।
“उल्ले के पट्ठे, जबान काट लूंगा तेरी...।" दादा जी फिर कमरे में गरजे।
तभी पैनल में शामिल कोई महिला बोलने लगी।
“तू भी बोली...तू भी बोली...चुप ही रहती...।“ महिला वक्ता ने दादा जी को और नाराज कर दिया।
सत्ताधारी दल के नेता किसी बात पर स्पष्टीकरण देने लगे।
“हरामजादो, बेच खाओ देश को...।" दादा जी ने तिरस्कार भाव से कहा।
सत्ताधारी दल के नेता ने अपनी सरकार के काम गिनाए।
“ये काम पहले क्यों नहीं किया। मैं पूछ रहा हूं तुम्हारी सरकार ने ये काम पहले क्यों नहीं कर दिया। अब गाल बजाने से कुछ फायदा है?" दादा जी ने अपनी बात रखी।
अब विपक्षी नेता बोलने लगे। दादा जी ध्यान से सुनने लगे। तभी सत्ताधारी दल का नेता बीच में बोल पड़ा।
“हट-हट, तुझे बीच में बोलने को किसने कहा?" दादा जी ने कमरे से ही आपत्ति की।
सत्ताधारी दल का नेता बोलता ही रहा।
“ओ-ओ-ओ...चुप रह। शर्म नहीं आ रही हरामखोर...।"
नेता दादा जी की बात सुन रहा होता तो ध्यान भी देता। वह बोलता रहा।
“ये चप्पल देखी है। इससे पीटूंगा तुझे...।“ रवि ने साफ सुना, दादा जी ने चप्पल उठाकर कई बार फर्श पर पटकी।
नेता के वक्तव्य पर कोई असर नहीं हुआ।
“किसे बेवकूफ बना रहे हो। ऐं... जनता को बिल्कुल उल्लू ही समझ रखा है।"
नेता बोलता रहा।
“अरे इसे कहां से ले आए। चुप कराओ भई इसे। जब देखो बकबक-बकबक। कोई इसे बाहर क्यों नहीं ले जाता।“
आखिर एंकर दूसरे वक्ता की तरफ मुखातिब हुआ।
“बोलो, तुम भी बोलो, सबै पता है क्या बोलोगे।" दादा जी उस वक्त के बोलने से पहले ही बिफर उठे।
तभी बीच में कोई और बोल पड़ा।
“ओ हो, अरे भई बोलने क्यों नहीं देता। जब तेरी बारी आएगी खूब बोलना तू भी।" दादा जी ने फिर ऐतराज जताया।
फिर एक विपक्षी दल के वक्ता की बात दादा जी ने पूरे ध्यान से सुनी।
“बहुत अच्छे, बहुत अच्छे...।“ पहली बार किसी वक्ता की बात रामपाल सिंह को अच्छी लगी।
कार्यक्रम खत्म हुआ। घर में लगा जैसे बहस का नहीं लाफ्टर चैलेंज का कार्यक्रम खत्म हुआ है। मम्मी, पापा, बहन सब हंस रहे थे। रवि ने किताब उठा ली पर उसे कोर्स के जवाब की जगह मम्मी को पापा द्वारा दिया जवाब ही याद आ रहा था। पापा एक दिन मम्मी से कह रहे थे, “अरे, दिन भर किसी से बोलते नहीं हैं। कहीं आते-जाते नहीं है। पुलिस की नौकरी में ड्राइवर से लेकर दारोगा तक हर मातहत इनकी तीखी जुबान और गालियों का शिकार होता था। अब आदत तो जाने से रही। सारी भड़ास टीवी पर निकलती है।"
“पर ये टीवी वाले भी तो जान-बूझकर ऐसी फालतू की बहस कराते हैं। ये नेता भी ऐसे-ऐसे शब्द बाण छोड़ते हैं जो सीधे लोगों के ड्राइंगरूम में जाकर गिरते हैं," मम्मी ने पापा से शिकायती लहजे में कहा था।
- लव कुमार सिंह
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