Tuesday 28 April 2020

थेराप्यूटिक आहार : बच्चों में कुपोषण से लड़ने का नया हथियार, मगर विवादग्रस्त

Therapeutic diet: new weapon to fight malnutrition in children, but controversial

  • थेराप्यूटिक आहार को पकाने की जरूरत नहीं पड़ती
  • सीधे पैकेट से निकालकर खाया जा सकता है
  • लेकिन भारत में इसके प्रयोग पर काफी विवाद है


यह कोरोना संकट से पहले की बात है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कहा था कि वे अपने यहां कुपोषित बच्चों को थेराप्यूटिक आहार दे सकते हैं। लेकिन साथ ही केंद्र ने यह भी कहा है कि नीति के तहत इसका (थेराप्यूटिक डाइट)  इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है। इसका कारण यह बताया गया है कि थेराप्यूटिक आहार बच्चों के लिए बेहतरीन डाइट है, इसका पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।

तीन चार पंक्तियों की यह खबर पढ़कर यह जानने की उत्सुकता जागी कि आखिर ये थेराप्यूटिक आहार है क्या। पता चला कि थेराप्यूटिक का शाब्दिक अर्थ है- वह चीज, जिसका संबंध किसी रोग को ठीक करने से हो। थेराप्यूटिक आहार एक ऐसी आहार योजना है जो कुछ निश्चित खाद्य या पोषक तत्वों को शरीर द्वारा ग्रहण करने को नियंत्रित करती है। यह किसी चिकित्सकीय अवस्था में किए जा रहे उपचार का हिस्सा है और सामान्यतः इस आहार को किसी चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ की सिफारिश पर ही लिया जाता है। 

थेराप्यूटिक आहार, सामान्य प्रकार के आहार का एक सुधरा हुआ रूप होता है। इसके तहत भोजन के पोषक तत्वों, उनके गठन और खाद्य एलर्जी या शरीर की खाद्य अरुचि में सुधार किया जाता है। आम थेराप्यूटिक आहार के उदाहरण ग्लूटिन मुक्त आहार, पूर्ण तरल आहार,  सांद्रित मीठे से रहित आहार, डायबिटीक (कैलोरी नियंत्रित) आहार, रेनाल आहार (किडनी की समस्या में दिया जाने वाला आहार), कम वसा वाला आहार, उच्च रेशायुक्त आहार, अतिरिक्त नमक इस्तेमाल किए बिना बना आहार आदि हैं।

कुपोषित बच्चों और पाचन संबंधी समस्याओं से घिरे अन्य बच्चों के लिए भी थेराप्यूटिक आहार का चलन दुनिया में तेजी से बढ़ा है। थेराप्यूटिक आहार को सामान्यतः प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, विटामिन और मिनरल को मिलाकर बनाया जाता है। कुपोषित बच्चों के लिए इसमें सूखा दूध, वनस्पति तेल, चीनी, मूंगफली का मक्खन आदि भी मिलाए जाते हैं। इस प्रकार के आहार में ये सभी तत्व एक साथ मिलाकर पीस दिए जाते हैं और फिर उन्हें अच्छे तरह से मिला लिया जाता है। अच्छी तरह मिलाने से प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट, लिपिड (वसा) के खांचों में अच्छे से सन्निहित हो जाते हैं।

इस प्रकार के आहार को तैयार करने और फिर पैकिंग करने तक पानी का प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि लिपिड ही अपने आप में लसदार होता है जिससे मिक्सिंग में मदद मिलती है। पानी का प्रयोग न करने से आहार के खराब होने की आशंका काफी कम हो जाती है। 
थेराप्यूटिक आहार को इस प्रकार तैयार किया जाता है कि इसे पैकेट खोलकर सीधे किसी स्नैक्स की तरह खाया जा सके। यानी इसे खाने के लिए इसमेें अन्य कुछ भी मिलाने की जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार इसे न तो पकाने की जरूरत होती है औऱ न ही इसमें बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा होता है।थेराप्यूटिक आहार की विशेषता यह है कि यह लंबे समय तक खराब नहीं होता है।

पिछले कुछ वर्षों से विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र संघ बाल कोष गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों को थोड़ी अवधि के लिए थेराप्यूटिक आहार देने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन भारत में हुए अध्ययनों में इसे घर में पकाए भोजन से ज्यादा प्रभावी नहीं पाया गया है। इसी के साथ इसका प्रयोग महंगा भी पड़ता है।

पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने आंगनबाड़ी के जरिये कुपोषित बच्चों को थेराप्यूटिक आहार की आपूर्ति की योजना बनाई थी, लेकिन सरकार द्वारा जारी किए गए टेंडर के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर हो गई है। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने अपने फैसले पर अमल को रोक दिया।

जब महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला लिया था तो केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने उसे पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। मंत्रालय का कहना था कि कुपोषण से थेराप्यूटिक आहार के जरिये लड़ना भारत सरकार द्वारा स्वीकृत नीति नहीं है। इसके बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने 38 करोड़ का टेंडर जारी कर दिया था। इसके तहत राज्य के 85000 कुपोषित बच्चों को इस आहार की आपूर्ति की जानी थी।

थेराप्यूटिक आहार के  विरोधियों का कहना है कि जब इस बात के पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि थेराप्यूटिक आहार कुपोषण से लड़ने के लिए घर में पकाए गए आहार से बेहतर नहीं है तो फिर इस पर भारी-भरकम रकम क्यों खर्च की जाए।

उधर, इस आहार के समर्थकों का तर्क है कि जब आप घर में पकाए भोजन से अभी तक भारत में कुपोषण की समस्या दूर नहीं कर पाए तो थेराप्यूटिक आहार को आजमाने में भी क्या हर्ज है? बात तो ठीक लगती है। थेराप्यूटिक आहार के समर्थक यह भी कहते हैं कि कुपोषण की समस्या से लड़ने के लिए थेराप्यूटिक आहार को एक चांस तो देना ही चाहिए। उनका तर्क है कि राजस्थान, गुजरात आदि में इस आहार के उपयोग के पायलट प्रोजेक्ट सफल रहे हैं। इसके अलावा अंतराष्ट्रीय स्तर पर दो मिलियन (20 लाख) से ज्यादा कुपोषित बच्चों का उपचार थेराप्यूटिक आहार से किया जा रहा है।

बहरहाल अब केंद्र सरकार ने नीतिगत न सही लेकिन व्यवहार में थेराप्यूटिक आहार के प्रयोग की इजाजत राज्यों की दी है। आगे देखते हैं कि भारत में  बच्चों में कुपोषण की समस्या और थेराप्यूटिक आहार का क्या भविष्य होता  है?
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  • भारत में 5 वर्ष से नीचे के 44 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट यानी मानक वजन से कम के हैं। 
  • भारत के 72 प्रतिशत नवजात बच्चे और 52 प्रतिशत विवाहित महिलाएं खून की कमी वाले एनीमिया रोग से पीड़ित हैं। 
  • अध्ययन यह भी कहते हैं कि गर्भावस्था के दौरान कुपोषण का शिकार हुआ बच्चा आगे अन्य असाध्य बीमारियों का शिकार भी बन सकता है।
यहां कुछ शब्द संक्षेप भी काम के हैं-
RUTF- रेडी टू यूज थेराप्यूटिक फूड (Ready to Use Therapeutic Food))
SAM- सेवेयर एक्यूट मालन्यूट्रिशन (Severe Acute Malnutrition)
- लव कुमार सिंह


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