Tuesday 28 April 2020

जब ताई ने ससुर का गाली देना छुड़ा दिया

When Tai broke the father-in-law's abusive habit



पिछले दिनों काफी अर्से बाद अपने गांव जाना हुआ। वैसे तो क्या शहर, क्या गांव, गालियां (Abuses) सभी जगह कानों में पड़ जाती हैं। अब देखिए ना, पिछले दिनों कांग्रेस की अलका लांबा ने महिला होकर पहलवान योगेश्वर दत्त को किस प्रकार से गाली दी। लेकिन गांव में गालियों की बरसात कुछ ज्यादा हो रही थी। वहां जाकर मन में सवाल उठा कि गांव के लोगों को भोला भाला और सीधा सच्चा कहा जाता है, फिर ये लोग इतनी गालियां क्यों देते हैं? इनके ज्यादातर वाक्य बिना गालियों के पूरे ही नहीं होते। गालियां भी ऐसी-ऐसी कि “उल्लू का पट्ठा“ तो उनके सामने पानी भरता नजर आता है। 

मैंने सोचा कि क्यों ने गांव वालों से ही इसका कारण पूछा जाए। गांव के एक रिटायर्ड प्रिंसिपल बोले, “इसका कारण ये हो सकता है कि पुराने जमाने से ही गांव वालों को राजा, महाराजाओं, शहंशाहों और जमींदारों के आदमियों के बहुत ही कड़वे और अपमानजनक वचन सुनने को मिलते थे। देखादेखी ये कड़वाहट खुद उनकी जबान में भी उतर आई।" एक बेपढ़े मगर दुनियादार सज्जन बोले, “पढ़-लिखकर आदमी अपने मन की बात छिपा लेता है। गांव का आदमी इसीलिए तो भोला है कि जो उसके मुंह में आता है वही कह देता है।"

मैंने शहर आकर भी कुछ विद्वानों से पूछा। एक सज्जन बोले, “गाली देने का मतलब है कि आप प्रकृति के ज्यादा करीब हैं। पढ़-लिखकर, सभ्य बनकर हम अपनी इस मूल भावना को दबा देते हैं या छिपा लेते हैं, लेकिन यह हम सबके अंदर होती है।"

एक और विद्वान ने कहा, “गाली एक तरह का हथियार है। इससे सामने वाला डर भी सकता है। गाली देकर एक तरह से आदमी खुद को नंगा कर देता है। अब नंगे से आखिर कौन पंगा ले। हां, यदि गाली खाने वाला भी नंगा होने को तैयार हो तो फिर मुश्किल हो जाती है।"

इन प्रतिक्रियाओं को सुनकर मेरे ज्ञान चक्षु कुछ खुल से गए। नंगा होने की बात से मुझे गांव की एक ताई की कहानी याद आ गई। कहानी ये कि ताई जब बहू बनकर ससुराल आई तो उनकी सास स्वर्गवासी हो चुकी थी। घर में ससुर से ही सामना होता था। ससुर ऐसा था, जिसके मुंह पर ही गाली रखी रहती थी। जब भी ससुर गुस्सा होता तो वह नाराज तो ताई से होता, मगर उसके निशाने पर ताई की मां रहती, जो कि उसके सामने भी नहीं होती थी। ससुर कहता, “अरै तेरी महतारी के कान पे मारूं...अरै इसकी मां की...अरै तेरी मां की ...।” ताई बेचारी घूंघट में मन मसोसकर रह जाती।

एक बार ताई अपने मायके जा रही थी। पति को काम था, इसलिए ताई के  साथ ससुर का जाना तय हुआ। ससुराल में ताई सब सहन कर रही थी पर मायके में ससुर की गाली सुनने को तैयार नहीं थी। ताई ने चलने से पहले यह सुनिश्चित करके कि घर के दूसरे कमरे में ससुर मौजूद है, अपनी मां को फोन लगाया। उस वक्त गांव के इक्का-दुक्का लैंडलाइन फोन में से एक ताई की ससुराल में भी था। ताई ने बातों से ऐसा जाहिर किया जैसे उसे ससुर की उपस्थिति का पता नहीं है।
ताई अपनी मां से जोर से बोली, “हां री मां, राम-राम। मैं बोलू हूं। हां सुन...मेरी गैल सुसरो भी आ रौ है। थोड़ी बच कै रहिए।” 
“क्यूं ?” ताई की मां ने पूछा।
“....अरी क्यूं का, ये सुसरो यहीं तुझै एक भी दिन ना छोड़ै है। रोज तेरे उप्पर सवार रहवै है। अब तो तू सामने मिलैगी। पता ना थारा के हाल करकै छोड़ै?”
"म्हारे न कहा कहवै है थारा सुसरो?" मां ने पूछा तो ताई ने सारी शर्म छोड़कर वे सारी गालियां फोन पर कह डालीं जो उनका ससुरा उन्हें देता था। इसके अलावा भी ससुर के खिलाफ मन में भरी भड़ास फोन पर खूब निकाली।

ताई की बात सुन ससुर चुपचाप घर से खिसक गया। बाहर जाकर उसने बहुत देर सोचते-विचारते हुए हुक्का गुड़गुड़ाया। पता नहीं उसने क्या सोचा, लेकिन उसके बाद उसने कभी ताई को गाली नहीं दी। मां वाली गाली तो बिल्कुल नहीं दी।

- लवकुमार सिंह

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