Friday 22 October 2021

साहित्य और समाज को पढ़ेंगे तो बन सकेंगे सफल पत्रकार और सफल फिल्मकार

If you study literature and society, you will be able to become successful journalists and successful filmmakers


चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के बृहस्पति भवन में 22 अक्टूबर 2021 को लघु फिल्मोत्सव 'नवांकुर' का आयोजन किया गया। मेरठ चलचित्र सोसायटी और पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय इस फिल्मोत्सव के आयोजक थे। इस आयोजन में विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति के.जी. सुरेश ने अपने संबोधन में सिनेमा और पत्रकारिता के बारे में कई महत्वपूर्ण और रोचक बातें कहीं। यहां प्रस्तुत हैं  के.जी. सुरेश जी की कुछ विचारणीय बातें-

फिल्म वही बनाइये जिसे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सके

फिल्म या तो अच्छी होती है या फिर बहुत अच्छी नहीं होती। मैं किसी फिल्म को बुरा नहीं कहूंगा, क्योंकि हर निर्माता-र्निदेशक अच्छी फिल्म ही बनाना चाहता है। मेरा कहना है कि फिल्म वही बनाइये जिसे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सके। उस फिल्म का कोई मतलब नहीं जिसे छुपकर देखना पड़े। आज ओटीटी फ्लेटफार्म पर जिस प्रकार की अश्लील और गाली-गलौज से भरी सीरीज दिखाई जा रही हैं, वे पता नहीं कहां के समाज को दर्शा रही हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय पारिवारिक मूल्यों को नष्ट करने की साजिश रची जा रही है। आप कोई सच दिखाना चाहते हैं तो दिखाइये, लेकिन आपको युधिष्ठिर (अश्वत्थामा प्रसंग) की तरह यह भी समझना चाहिए कि कौन से सच का स्वर ऊंचा रखना है और किस सच को धीमे से कहना है।

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता- छड़ी घुमाइये मगर उससे कोई घायल नहीं होना चाहिए

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में बहुत बारीक अंतर है। अपनी स्वतंत्रता का आनंद उठाइये। आपको स्वतंत्रता है कि आप अपने चारों तरफ छड़ी घुमा सकते हैं, लेकिन आपको यह स्वतंत्रता नहीं है कि ऐसे छड़ी घुमाने के दौरान किसी को चोट पहुंचा दें। अगर आप ऐसा करते हैं तो वह स्वच्छंदता तो होगी ही, साथ ही आप कानून के घेरे में भी आ सकते हैं।

आज का सबसे बड़ा संकट- साहित्य और पढ़ने से दूरी

पत्रकारिता का आज का सबसे बड़ा संकट यह है कि हमने पढ़ना छोड़ दिया है। पत्रकारिता, पत्रकार से आग्रह करती है वह अपने आंख और कान खुले रखे, लेकिन आज पत्रकार ने आंख और कान को बंद करके अपना मुंह खोल लिया है। आज पत्रकारिता में बिना पढ़े, लिखा जा रहा है और बिना सुने, बोला जा रहा है। सिनेमा में भी पुराने जमाने जैसी रचनात्मकता अब नहीं दिखती और इसका कारण भी साहित्य से दूरी है। आज या तो किसी की बायोपिक बन रही है या फिर किसी ऐतिहासिक घटना पर फिल्म बनाई जा रही है। यह अच्छी बात है और इनसे भी हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन एक नएपन का, रचनात्मकता का, नई कहानियों का अभाव सा दिखता है। ऐतिहासिक विषयों पर भी घटनाओं को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है जिससे विवाद होता है।

किताबें और समाज को पढ़ें, लोगों से मिलें, ऑब्जर्ब करें

पत्रकार और फिल्मकार दोनों को ही चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा पढ़ें। ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें। ज्यादा से ज्यादा स्थानों पर घूमें। समाज को, लोगों को ऑब्जर्ब  करें। कहानियां हमारे आसपास ही मिल जाती हैं। आप पढ़ें, घूमें, लोगों से मिलें और अपने आंख और कान खुले रखें, आपके पास खबरें और कहानियों की कमी नहीं होगी। 

(प्रोफेसर के.जी. सुरेश ने उदाहरण भी दिया कि कैसे एक बार एक कार्यक्रम में जाने के लिए उन्होंने जब कैब ड्राइवर के नंबर पर फोन किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई। सुरेश जी ने महिला स्वर सुनकर फोन रख दिया। कई बार फोन मिलाने पर भी जब महिला स्वर ही सुनाई दिया तो उन्होंने पूछा। इस पर दूसरी तरफ से कहा गया कि उन्होंने सही जगह फोन मिलाया है और उनकी कैब ड्राइवर महिला ही है। इसके बाद कैब में बैठने पर उन्हें कैब चला रही 22-23 साल की लड़की के संघर्ष की कहानी पता चली, जो पढ़ाई भी कर रही थी और कैब भी चला रही थी। उन्होंने ऐसा ही एक और निजी अनुभव बताया जिसका सार यही था कि यदि हम अपने आसपास की चीजें में दिलचस्पी लें और उन्हें ऑब्जर्ब करें तो कहानियों की कोई कमी नहीं है।)

मध्य प्रदेश में कुलपति नहीं कुलगुरु

मध्य प्रदेश में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर को कुलपति नहीं बल्कि कुलगुरू कहा जाता है। (कुलगुरु शब्द कानों को बहुत अच्छा लगा। सभी जगह इसे कुलगुरु ही कर दिया जाएगा तो बहुत अच्छा रहेगा।)

एक कविता की जन्मशती

माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में एक नई पहल हुई है कि वहां पर 'पुष्प की अभिलाषा' जैसी कालजयी कविता की जन्मशती भी मनाई जा रही है। 

(उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की केंद्रीय जेल की बैरक संख्या 9 में 5 जुलाई 1921 को राष्ट्र कवि पंडित माखन लाल चतुर्वेदी ने असहयोग आंदोलन के दौर में 'पुष्प की अभिलाषा' कविता लिखी थी। यह कविता आजादी के दीवानों में जोश भरने वाली साबित हुई थी।) 

- लव कुमार सिंह

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