Thursday 14 October 2021

अखबार में जनता की भागीदारी

अखबार में जनता की भागीदारी



शहर में नगर निगम के चुनाव हो रहे थे। मतदान की तिथि नजदीक आ रही थी। शहर के सभी प्रमुख अखबारों में चुनाव की कवरेज को लेकर तगड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही थी। कोई वार्डों में हुए कामों की समीक्षा कर रहा था तो कोई प्रत्याशियों के दावे-प्रतिदावे छाप रहा था। “जनपक्ष“ अखबार ने अपने नाम के अनुरूप तय किया कि मेयर पद के सभी प्रत्याशियों को अखबार के दफ्तर में बुलाकर “फोनो“ कराया जाए। दूसरे अखबारों को पता न चले, इसलिए कार्यक्रम की पूर्व सूचना भी अखबार में नहीं छापने का फैसला लिया गया।

अभी-अभी पत्रकारिता में आए युवा रिपोर्टर अरविंद शर्मा ने अखबारों में यह तो कई बार पढ़ा था कि बड़े अफसरों, नेताओं आदि को बुलाकर उनकी जनता से फोन पर समस्याओं आदि को लेकर सीधे बात कराई जाती थी, पर इस तरह के आयोजन के लिए “फोनो“ शब्द का इस्तेमाल पहली बार सुना था। इस तरह के आयोजन में भागीदारी का उसका यह पहला मौका था। वह रोमांचित था क्योंकि इस तरह प्रमुख लोगों को आम जनता से जोड़ने का कार्यक्रम उसे काफी भाता था। वह समझता था कि अधिकारियों के यहां दर-दर भटकने वाले आम लोगों को अफसरों से सीधे बात करने का मौका देकर अखबार बहुत अच्छा काम करते हैं।

कार्यक्रम दोपहर बाद दो से तीन बजे तक था। इससे पहले सुबह की बैठक में सभी रिपोर्टरों को जिम्मेदारी बांटी जाने लगी। बेहद उत्साहित अरविंद अपनी और कुछ साथी रिपोर्टरों की जिम्मेदारी सुनकर चौंक गया। उसे और अन्य तीन-चार रिपोर्टरों को दो से तीन बजे के बीच में “फोनो“ के लिए निर्धारित नंबर पर आम जनता की तरफ से फर्जी कॉल करनी थी। हैरान अरविंद ने रिपोर्टिंग इंचार्ज से आपत्ति जताई तो इंचार्ज ने कहा, “क्यों टेंशन लेते हो। ये नेता भी तो फोन करने के लिए अपने बंदों का इंतजाम करके आते हैं। और फिर तुम वैसे भी तो नेताओं से सवाल पूछते हो, फिर आज क्या दिक्कत है?“
“पर यहां कार्यक्रम तो जनता का है?“
“जनता गई भाड़ में, तुमसे जैसा कहा जाए करो।“

अरविंद ने एक घंटे में जितने फोन किए जा सकते थे, किए। सुबह अखबार में देखा तो आठ कॉलम में शीर्षक लगा था- “मेयर प्रत्याशियों को जनता ने झकझोरा“। हालांकि जनता ही यह नहीं जानती थी कि उनमें से एक भी सवाल जनता का नहीं था।
- लव कुमार सिंह

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