Thursday 14 October 2021

दशहरा : इस ब्लंडर से बचना पत्रकार मित्रों, क्योंकि यह कई बार हो चुका है

Dussehra : Journalist friends, avoid this blunder as it has happened many times


 

दशहरा पर अखबारों में छुट्टी नहीं होती, लेकिन उस दिन सौभाग्य से मेरा साप्ताहिक अवकाश पड़ गया था। लिहाजा शाम को बच्चों को दशहरा का मेला दिखाया और रात को जमकर नींद ली। सुबह तरोताजा उठा, लेकिन चाय के साथ जब अखबार भी हाथ में लिया तो यह ताजगी चुटकियों में गायब हो गई।

अमर उजाला मेरठ के सिटी पेज पर पूरे छह कॉलम में दशहरा की खबर लीड लगी थी। खबर की प्रस्तुति तो कई फोटो के साथ बढ़िया थी, लेकिन खबर के ऊपर लगे 50-55 प्वाइंट के मोटे शीर्षक ने मेरे चेहरे पर पसीना ला दिया। शीर्षक लंबा था, लेकिन उसकी शुरुआत में लिखा था-

सत्य पर असत्य की जीत, ........

यदि आप शीर्षक में हुई गलती न पकड़ पाएं हों तो फिर लिखता हूं-

सत्य पर असत्य की जीत,.......

वर्षों पहले हुए इस वाकये के दौरान अपनी ड्यूटी सिटी डेस्क पर ही थी। उस समय सिटी डेस्क का इंचार्ज था मैं। हालांकि इस गलती के दौरान मैं दफ्तर में मौजूद नहीं था, लेकिन फिर भी मेरी सुबह और फिर पूरा दिन ही खराब हो गया था। लग रहा था कि आज का दिन जिंदगी में गिना ही न जाए। इसके बजाय तुरंत कल का दिन आ जाए। उन दिनों अमर उजाला मेरठ के संपादक थे शशिशेखर जी। शशि जी को जानने वाले पत्रकार मित्र अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दिन इस गलती के लिए सिटी डेस्क वालों की कितनी मजम्मत हुई होगी।

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जब भी दशहरा आता है तो मुझे यह वाकया याद आ जाता है। यदि भूल भी जाता हूं तो कुछ पत्रकार साथी इसी प्रकार की गलती दोहराकर इसे फिर से याद दिला देते हैं। जी हां, बीते वर्षों में 'सत्य पर असत्य की जीत'  की यह गलती मैं दो-तीन बार अन्य अखबारों में भी देख चुका हूं। आगे फिर किसी से ऐसी गलती न हो, इसी प्रयास में यह पोस्ट लिख रहा हूं।

दरअसल, बोलचाल में हम हमेशा ही सत्य को पहले  बोलते हैं और असत्य को उसके बाद। सत्य-असत्य। यही अभ्यास पत्रकारों द्वारा शीर्षक लगाने में भी घुस आता है और वे 'असत्य पर सत्य की जीत' के बजाय 'सत्य पर असत्य की जीत' लिख डालते हैं।

अखबार की दुनिया में अक्सर ऐसा होता है कि जब चूक होती है तो उसे किसी की आंखें पकड़ नहीं पाती हैं। ऊपर जिस वाकये का जिक्र मैंने किया, उसमें भी शीर्षक को कई सीनियर साथियों ने चेक किया था, लेकिन किसी की नजर में यह चूक नहीं आई। इस समस्या का हल यही है कि जब भी शीर्षक को पढ़ें तो शब्दों को अलग-अलग करके हिज्जे करके थोड़ा धीमी गति से पढ़ें। ऐसा करने से गलती अवश्य ही पकड़ में आ जाती है।

...तो पत्रकार मित्रों से अनुरोध है कि इस दशहरा और आगे भी सावधान रहें और अपनी सुबह और पूरे दिन को बरबाद होने से बचाएं। सावधान रहने से आप पाठकों की अखबार के दफ्तर में फोन पर की गई ऐसी टिप्पणियों से भी बचे रहेंगे- "जाने कैसे लोग भर्ती हो गए हैं अखबार में, खबर लिखना भी नहीं आता।"

- लव कुमार सिंह

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