अप मार्केट
शाम होने को थी। एक अखबार के दफ्तर में 'नये जमाने' के तेजतर्रार संपादक अपने सहकर्मियों के
साथ अगली सुबह के अखबार के बारे में प्लान कर रहे थे।
संपादक ने पूछा- "देश-विदेश का तो
हो गया, सिटी की क्या खबरें हैं प्यारो?"
एक सहकर्मी- "आज तो नगर निगम के
खिलाफ प्रदर्शन के सिवाय और कोई बड़ी खबर नहीं है भाई साब, क्राइम भी निल है।"
संपादक- "कुछ नहीं है तो फिर अखबार
कैसे बिकेगा? ये
नाली, खड़ंजा, सफाई के लिए प्रदर्शन के समाचार कब तक
लीड बनाओगे। मैंने तुम लोगों से कल वेश्याओं पर एक बढ़िया स्टोरी के लिए कहा था, वह भी तैयार नहीं हुई। कॉल गर्ल्स वाला
मामला भी रुका पड़ा है। कैसे नाकारा लोगों के बीच आ गया हूं मैं।"
यह कहते हुए संपादक ने गुस्से से मेज पर
हाथ मारा।
सभी सहकर्मी चुप। तभी एक और रिपोर्टर
तेजी से कमरे में आया।
रिपोर्टर- "सर, अभी-अभी सेंट्रल मार्केट में रेप की खबर
है। रेप तो कल रात हुआ था, पर
पता अभी चला है।"
संपादक- "फिर रेप...वैरी गुड, आज का खेल हो गया। लेकिन ये बताओ महिला
किस वर्ग की है? कोई
मजदूरनी-वजदूरनी है या फिर ठीकठाक केस है?
पिछली बार तुम लोगों ने एक डाउन मार्केट रेप पहले पेज पर छपवा
दिया था। इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए।"
रिपोर्टर- "नहीं सर, ऐसा नहीं है। पीड़िता कॉलेज की
छात्रा है। खूब हंगामा हो रहा है।"
संपादक- "क्या...अच्छा...मजा आ
गया। यही सिटी का लीड समाचार रहेगा। एक खबर पहले पेज पर भी होगी। प्वाइंट नोट करो, हार्ड न्यूज के अलावा मुझे इस-इस एंगल
पर खबरें चाहिये।"
कुछ सहकर्मी नोटबुक लेकर तैयार हो गये।
संपादक- "एक तो बैकग्राउंड निकलवा
लो, जिसमें
यह दिखाओ कि इस साल अब तक शहर में ऐसी कितनी घटनाएं हुई हैं। फिर उसी के आधार पर
खबर का हैडिंग देंगे, जैसे
शहर में हर 72 घंटे
में एक महिला बलात्कार की शिकार। (दूसरे सहकर्मी की तरफ इशारा करके) तुम पीड़ित
छात्रा से बात करो। इसके अलावा कुछ नामी मनोविश्लेषकों से बात करो। वे इस तरह की
बढ़ती घटनाओं के बारे में क्या कहते या कहती हैं। (तीसरे सहकर्मी से) तुम पुलिस की
कार्रवाई पर एक खबर दो। एक खबर अलग से पूरे घटनाक्रम पर दो। कुछ फोटो भी होंगे।
पूरा एक पेज ही रेप के नाम कर देते हैं। मुझे नहीं लगता कि हमारे सामने वाला अखबार
इतना कुछ सोच पायेगा। जाओ जुट जाओ प्यारो।"
सभी सहकर्मी उठने लगे।
"सिटी
डेस्क इंचार्ज अखिलेश पांडे को मेरे पास भेजो।" संपादक ने एक सहकर्मी को
रोककर कहा।
"जी
भाई साब!" अगले ही क्षण पांडे जी हाजिर थे।
"पांडे
जी, काम
में मन नहीं लग रहा क्या? कुछ
सीखेंगे या नहीं? मैंने
कितनी बार कहा है कि अखबार में डाउन मार्केट फोटो नहीं जायेंगे, फिर आपने आज के सिटी एडीशन में दो-दो
गलतियां कर डालीं। एक आपने आग तापते रिक्शाचालकों की फोटो छापी और फिर अगले ही पेज
पर चारे का गट्ठर ले जाती महिला की। आप अखबार का कीमती स्पेस क्यों बरबाद कर रहे
हैं?"
"वो
भाई साहब, ठंड
बढ़ गई है ना तो गरीबों के लिए अलाव की समस्या वाली खबर के साथ आग तापने की फोटो
लगाई थी। उधर गांवों में चारे की समस्या की खबर थी तो दूसरी फोटो..." पांडे
जी का जवाब बीच में ही कट गया।
"भाड़
में जाएं ये समस्याएं। देखो पांडे,
मेरे सामने गरीब-गरीब करोगे तो फिर गरीब ही रहना। अगले साल
वेतन बढ़ाने की बात मत करना। आप लोग कुछ सीखेंगे या नहीं। आज से अखबार में इस तरह
के फोटो छापे तो फिर शाम को इस्तीफा भी लिखकर साथ में लाना।"
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