Wednesday 5 January 2022

संपूर्ण हल प्रश्नपत्र - बीजेएमसी प्रथम सेमेस्टर, सामान्य हिंदी, कोड- 104

संपूर्ण हल प्रश्नपत्र - बीजेएमसी प्रथम सेमेस्टर, सामान्य हिंदी, कोड- 104


चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परीक्षा दिसंबर 2020



प्रश्न 1- लिपि क्या है? (अति लघु उत्तरीय)

उत्तर- लिपि का अर्थ है किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग-अलग चीजें हैं। भाषा वह है जो बोली जाती है। लिपि वह  है जिसमें कोई भाषा लिखा जाती है।

उदाहरण 

हिंदी भाषा को लिखने के लिये देवगरी लिपि का प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी भाषा को लिखने के लिये रोमन लिपि प्रयोग होती है। गुरुमुखी, ब्राह्मी आदि कुछ अन्य लिपियों के उदाहरण हैं।

वाक्यों के उदाहरण

वह जाता है। (यहां भाषा हिंदी है और लिपि देवनागरी है।)

Vh jata hai (यहां भाषा हिंदी है, लेकिन लिपि रोमन है।)

ही गोज (यहां भाषा अंग्रेजी है, लेकिन लिपि देवनागरी है।)

He goes (यहां भाषा अंग्रेजी है और लिपि रोमन है।)

प्रश्न 2- अनुतान किसे कहते हैं? (अति लघु उत्तरीय)

उत्तर- किसी शब्द अथवा वाक्य का उच्चारण करते समय उसमें सुर के उतार-चढ़ाव को अनुतान कहते हैं। इसका अर्थ है- शब्दों या वाक्यों को उनके भावों के अनुसार बोलना।

उदाहरण

पंडित जसराज आ गए।

पंडित जसराज आ गए?

पंडित जसराज आ गए!

यहां तीनों वाक्यों में समान शब्द  हैं लेकिन इनका उच्चारण अलग-अलग होगा। पहले वाक्य को साधारण तरीके से बोला जाएगा। दूसरे वाक्य को प्रश्न पूछने के अंदाज में बोला जाएगा और तीसरे वाक्य को विस्मयाधिबोधक वाक्य के अनुरूप बोला जाएगा। तीनों में ही सुर का उतार-चढ़ाव अलग-अलग होगा। यह अंतर अनुतान के कारण होगा। वाक्यों में लगने वाले विराम चिह्नों के प्रयोग से अनुतान उत्पन्न होता है।

प्रश्न 3- लिंग की परिभाषा क्या है? (अति लघु उत्तरीय)

उत्तर- लिंग संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है- निशान। जिस संज्ञा शब्द से व्यक्ति की जाति का पता चलता है उसे लिंग कहते हैं। इससे यह पता चलता है कि वह पुरुष जाति का है या स्त्री जाति का।
हिंदी में दो लिंग हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। 
उदाहरण
पुरुष जाति- बैल, बकरा, मोर- पुल्लिंग
स्त्री जाति- गाय, बकरी, मोरनी- स्त्रीलिंग
संस्कृत भाषा में नपुंसकलिंग भी है जो अप्राणीवाचक संज्ञाओं के लिये प्रयोग होता है। हिंदी न जानने वालों को खासतौर से अप्राणीवाचक संज्ञाओं के लिंग निर्धारण करने में कठिनाई आती है।

प्रश्न 4- हिंदी में कितने वचन हैं? (अति लघु उत्तरीय)

उत्तर- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि के जिस रूप से संख्या का बोध होता है, वह वचन कहलाता है। अधिकांश भाषाओं में दो वचन ही होते हैं। हिंदी में भी दो वचन हैं- एकवचन और बहुवचन। संस्कृत में तीसरा वचन भी होता है जिसे द्विवचन कहते हैं।
एकवचन- जब संज्ञा का कोई रूप किसी एक ही व्यक्ति या वस्तु के होने का बोध कराता है तो वहां एकवचन होता है। जैसे- मछली, पुस्तक।
बहुवचन- जब संज्ञा का कोई रूप एक से ज्यादा व्यक्ति या वस्तु के होने का बोध कराता है तो वहां बहुवचन होता है। जैसे मछलियां, पुस्तकें।

प्रश्न 5- विशेषणों के रूप परिवर्तन को स्पष्ट कीजिये? (अति लघु उत्तरीय)

उत्तर- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताते है उन्हें विशेषण कहते हैं। 

  • विशेषण का अपना लिंग-वचन नहीं होता, इसलिए वह प्रायः अपने विशेष्य (जिसकी वह विशेषता बताता है) के अनुसार अपने रूपों को परिवर्तित करता है। हिंदी के सभी विशेषण दोनों लिंगों (स्त्रीलिंग, पुल्लिंग) में समान रूप से बने रहते हैं। केवल आकारांत विशेषण स्त्रीलिंग में ईकारांत हो जाया करता है।

उदाहरण

- अच्छा लड़का सर्वत्र आदर का पात्र होता है।
- अच्छी लड़की सर्वत्र आदर की पात्रा होती है।

  • सार्वनामिक विशेषणों के रूप भी विशेष्यों के अनुसार ही होते हैं।

उदाहरण

- यह लड़का, वह लड़की

  • जिन विशेषणों के अंत में वानया मानहोता है, उनके पुल्लिंग दोनों वचनों में वानया मानऔर स्त्रीलिंग दोनों वचनों में वतीया मतीहोता है।
उदाहरण

गुणवान लड़का-गुणवान लड़के, गुणवती लड़की-गुणवती लड़कियां

  • विशेषण तब भी रूप बदलते हैं जब वाक्य में किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना की जाती है। 

मूलावस्था- इसमें विशेषण शब्द किसी एक व्यक्ति या वस्तु का गुण-दोष बताता है और अपनी मूल अवस्था में रहता है। जैसे- वह सुंदर लड़की है।

उत्तरावस्था- इसमें दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच अधिकता या न्यूनता की तुलना होती है। यहां विशेषण का रूप बदलता है। जैसे सीतागीता से अधिक सुंदर है।

उत्तमावस्था- इसमें दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच तुलना की जाती है और उनमें से एक को श्रेष्ठ या निम्न बताया जाता है। जैसे- तुम सबसे सुंदर हो।


प्रश्न 6- एकार्थक शब्द किसे कहते हैं? उदाहरण सहित उत्तर दीजिये ( लघु उत्तरीय)

    उत्तर- एकार्थक शब्द

    ऐसे शब्द जिनका अर्थ एक जैसा प्रतीत होता है, पर फिर भी वे समानार्थी नहीं होते हैं। यानी एक जैसे लगते हुए भी उनके अर्थ में अंतर होता है। ऐसे शब्द एकार्थक शब्द कहलाते हैं।

    उदाहरण 1

    अस्त्र- ऐसा हथियार जो हाथ से फेंककर चलाया जाता है, जैसे- तीर

    शस्त्र- ऐसा हथियार जो हाथ में पकड़कर इस्तेमाल किया जाता है, जैसे- तलवार

    उदाहरण 2

    अमूल्य- जिसका कोई मूल्य न हो

    बहुमूल्य- जिसका मूल्य बहुत अधिक हो

    उदाहरण 3

    अपराध- सामाजिक और सरकारी कानून का उल्लंघन

    पाप- नैतिक और धार्मिक नियमों का उल्लंघन

    उदाहरण 4

    अगम- जहां पहुंचा न जा सके

    दुर्गम- जहां पहुंचना कठिन हो

    उदाहरण 5

    अवस्था- जीवन का बीता हुआ भाग

    आयु- संपूर्ण जीवनकाल

    उदाहरण 6

    असफल- व्यक्ति के लिए प्रयोग होता है

    निष्फल- कार्य के लिए प्रयोग होता है

    उदाहरण 7

    अहंकार- घमंड

    अभिमान- गौरव

    उदाहरण 8

    तंद्रा- हल्की नींद

    निंद्रा- गहरी नींद

    उदाहरण 9

    प्रलाप- व्यर्थ की बात

    विलाप- दुख में रोना

    उदाहरण 10

    लज्जा- दूसरों के द्वारा स्वयं के बारे में गलत सोचने का अनुमान

    ग्लानि- अपनी गलती पर होने वाला पश्चाताप

    प्रश्न 7- पुनरूक्ति से आप क्या समझते हैं? एक उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट कीजिये। ( लघु उत्तरीय)

      उत्तर- पुनरूक्ति

      पुनरूक्ति दो शब्दों के योग से बना शब्द है। ये शब्द हैं पुन्र और उक्ति। यानी वह उक्ति (कथन) जो बार-बार प्रकट हो।

      जिस वाक्य में शब्दों की पुनरावृत्ति (दोहराव) होती है यानी एक शब्द दो या दो से ज्यादा बार आता है, लेकिन उस शब्द का अर्थ नहीं बदलता, वहां पुनरूक्ति अलंकार होता है।

      पुनरूक्ति का प्रयोग किसी बात में किसी बात पर जोर देने के लिय, लय लाने के लिए, और भाषा के सौंदर्य को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है।

      ध्यान रखने की बात यह है कि यमक अलंकार में भी शब्दों की पुनरावृक्ति होती है यानी एक शब्द दो या दो से अधिक बार आता है, लेकिन यमक अलंकार में हर बार उस शब्द का अर्थ अलग होता है। पुनरुक्ति में दोहराए गए शब्द का अर्थ एक ही रहता है।

      पुनरूक्ति के उदाहरण

      मीठा-मीठा रस टपकता है।

      सुबह-सुबह काम पर जा रहे हैं।

      ललित-ललित काले घुंघराले

      थल-थल में बसते हैं शिव ही

      प्रश्न 8- मुहावरे और लोकोक्ति में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिये। ( लघु उत्तरीय)

        उत्तर- 

        मुहावरा 

        मुहावरा वह वाक्यांश होता है जो अपने कहे गए (वाचिक) अर्थ का बोध न कराकर अलंकारिक/प्रतीकात्मक/लाक्षणिक अर्थ का बोध कराता है। साथ ही वह भाषा की सजीवता और अर्थ गौरव बढ़ाता है।

        उदाहरण– घी के दिए जलाना

        यहां शाब्दिक अर्थ हुआ– घी के दीए जलाना, लेकिन वास्तविक अर्थ है– खुशी मनाना

        मुहावरों के कुछ और उदाहरण–

        - अंग-अंग ढीला होना- (बहुत थक जाना)- सारा दिन काम करने से मेरा अंग-अंग ढीला हो गया है।

        - अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना- (अपनी प्रशंसा करना)- राजू मुझे इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि वह अपने मुंह मियां मिट्ठू बनता रहता है।

        - अंगारे उगलना- (क्रोध में लाल-पीला होना)- अभिमन्यु की मृत्यु से आहत अर्जुन कौरवों पर अंगारे उगलने लगे।

        - अर्थ से फर्श तक- (आकाश से भूमि तक)- अमेरिका अपने दुश्मन को समाप्त करने के लिये अर्श से फर्श तक का जोर लगा देता है।

        - आग पर तेल छिड़कना- (और भड़काना)- बहुत से लोग सुलह कराने के बजाय आग पर तेल छिड़कने में माहिर होते हैं।

        - आसमान टूटना- (विपत्ति आना)- भाई और भतीजे की मृत्यु का समाचार सुनकर मुख्यमंत्री जी पर आसमान टूट पड़ा।

        लोकोक्ति

        लोकोक्ति कही गई ऐसी बात होती है जिसमें जीवन के अनुभवों को संक्षिप्त और अनूठे ढंग से व्यक्त किया गया हो और वह समय की कसौटी पर खरी उतरती हो। इसे कहावत भी कहते हैं।

        उदाहरण–

        - अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनों को दे– स्वार्थी व्यक्ति पक्षपात करता है।

        - अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता–  अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।

        - अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत- अवसर निकल जाने के बाद पछताना व्यर्थ होता है।

        - अधजल गगरी छलकत जाय- कम ज्ञान, धन, सम्मान वाले व्यक्ति अधिक प्रदर्शन करते हैं।

        - अभी दिल्ली दूर है- अभी कसर है।

        - आसमान से गिरा खजूर में अटका- एक आपत्ति के बाद दूसरी आपत्ति का आ जाना।

        मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर

        1– मुहावरे वाक्यांश होते है, जबकि कहावत ज्यादातर पूरे वाक्य में होती हैं।

        2– मुहावरों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से न होकर वाक्य रचना के अनुसार होता है। कहावत पर वाक्य रचना का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

        3– मुहावरे को वाक्य से निकाल दें तो वाक्य निर्जीव हो जाता है। कहावत पूरा वाक्य होता है इसलिए हटाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

        4– बहुत सी कहावतों का संबंध सत्य घटना, प्रसंग या अंतर्कथा से होता है यानी इनकी उत्पत्ति के पीछे कोई प्रसंग या घटना होती है जिससे प्रेरित होकर वह कहावत चलन में आती है। उधर, मुहावरों का संबंध किसी सत्य घटना, प्रसंग या अंर्तकथा से नहीं होता है।

        प्रश्न 9- अपने प्राचार्य को एक पत्र लिखकर महाविद्याल/विद्यालय की समस्याओं से उन्हें अवगत कराइए। (विस्तृत उत्तरीय)

          उत्तर- छात्र-छात्राएं कक्षा में बताए गए तरीके के अनुसार स्वयं उत्तर लिखें।

          प्रश्न 10- अनुच्छेद लेखन क्या है? इस पर एक लेख लिखिए। (विस्तृत उत्तरीय)

            उत्तर- अनुच्छेद लेखन

            किसी एक भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए लिखे गये संबद्ध और लघु वाक्य-समूह को अनुच्छेद-लेखन कहते हैं।

            अथवा


            किसी घटना, दृश्य अथवा विषय को संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित ढंग से जिस लेखन-शैली में प्रस्तुत किया जाता है, उसे अनुच्छेद-लेखन कहते हैं।


            अनुच्छेदशब्द अंग्रेजी भाषा के ‘पैराग्राफ’ शब्द का हिंदी पर्याय है। अनुच्छेद निबंधका संक्षिप्त रूप होता है। इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 80 से 100 शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए जाते हैं।


            अनुच्छेद में हर वाक्य मूल विषय से जुड़ा रहता है। अनावश्यक विस्तार के लिए उसमें कोई स्थान नहीं होता। अनुच्छेद में घटना अथवा विषय से संबद्ध वर्णन संतुलित तथा अपने आप में पूर्ण होना चाहिए।


            अनुच्छेद की भाषा-शैली सजीव एवं प्रभावशाली होनी चाहिए। इसके लिए शब्दों के सही चयन के साथ लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग भी करना चाहिए।


            अनुच्छेद का मुख्य कार्य किसी एक विचार को इस तरह लिखना होता है, जिसके सभी वाक्य एक-दूसरे से बंधे होते हैं। एक भी वाक्य अनावश्यक और बेकार नहीं होना चाहिए।


            अनुच्छेद अपने-आप में स्वतन्त्र और पूर्ण होते हैं। अनुच्छेद का मुख्य विचार या भाव की कुंजी या तो आरंभ में रहती है या अंत में। उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में मुख्य विचार अंत में दिया जाता है।


            अनुच्छेद लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :


            (1) अनुच्छेद लिखने से पहले रूपरेखा, संकेत-बिंदु आदि बनानी चाहिए।
            (2) अनुच्छेद में विषय के किसी एक ही पक्ष का वर्णन करें।
            (3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।
            (4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएँ।
            (5) अनावश्यक विस्तार से बचें, लेकिन विषय से न हटें।
            (6) शब्द-सीमा को ध्यान में रखकर ही अनुच्छेद लिखें।
            (7) पूरे अनुच्छेद में एकरूपता होनी चाहिए।
            (8) विषय से संबंधित सूक्ति अथवा कविता की पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।


            अनुच्छेद की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-


            (1) अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता है। इसमें अन्य विचार नहीं रहते।
            (2) अनुच्छेद के वाक्य-समूह में उद्देश्य की एकता रहती है। अप्रासंगिक बातों को हटा दिया जाता है।
            (3) अनुच्छेद के सभी वाक्य एक-दूसरे से गठित और सम्बद्ध होते है।
            (4) अनुच्छेद एक स्वतन्त्र और पूर्ण रचना है, जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं होता।
            (5) उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका आरम्भ, मध्य और अन्त आसानी से व्यक्त हो जाय।
            (6) अनुच्छेद सामान्यतः छोटा होता है, किन्तु इसकी लघुता या विस्तार विषयवस्तु पर निर्भर करता है।
            (7) अनुच्छेद की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।


            अनुच्छेद के कुछ उदाहरण (परीक्षार्थी इनमें से कोई एक या दो उदाहरण लिख सकते हैं)


            समय किसी के लिए नहीं रुकता


            समयनिरंतर बीतता रहता है, भी किसी के लिए नहीं ठहरता। जो व्यक्ति समय के मोल को पहचानता है, वह अपने जीवन में उन्नति प्राप्त करता है। समय बीत जाने पर कार्य करने से भी फल की प्राप्ति नहीं होती और पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं आता। जो विद्यार्थी सुबह समय पर उठता है, अपने दैनिक कार्य समय पर करता है तथा समय पर सोता है, वही आगे चलकर सफलता व उन्नति प्राप्त करता है। जो व्यक्ति आलस में आकर समय गँवा देता है, उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। संतकवि कबीरदास जी ने भी कहा है :

            "काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
            पल में परलै होइगी, बहुरि करेगा कब।।

            समय का एक-एक पल बहुत मूल्यवान है और बीता हुआ पल वापस लौटकर नहीं आता। इसलिए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक विद्यार्थी को नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिए। जो समय बीत गया उस पर वर्तमान समय बरबाद न करके आगे की सुध लेना ही बुद्धिमानी है।


            अभ्यास का महत्व


            यदि निरंतर अभ्यास किया जाए, तो असाध्य को भी साधा जा सकता है। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को बुद्धि दी है। उस बुद्धि का इस्तेमाल तथा अभ्यास करके मनुष्य कुछ भी सीख सकता है। अर्जुन तथा एकलव्य ने निरंतर अभ्यास करके धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त की। उसी प्रकार वरदराज ने, जो कि एक मंदबुद्धि बालक था, निरंतर अभ्यास द्वारा विद्या प्राप्त की और ग्रंथों की रचना की। उन्हीं पर एक प्रसिद्ध कहावत बनी :

            "करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
            रसरि आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।

            यानी जिस प्रकार रस्सी की रगड़ से कठोर पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। यदि विद्यार्थी प्रत्येक विषय का निरंतर अभ्यास करें, तो उन्हें कोई भी विषय कठिन नहीं लगेगा और वे सरलता से उस विषय में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे।


            मीठी बोली का महत्व


            वाणीही मनुष्य को अप्रिय व प्रिय बनाती है। यदि मनुष्य मीठी वाणी बोले, तो वह सबका प्यारा बन जाता है और उसमें अनेक गुण होते हुए भी यदि उसकी बोली मीठी नहीं है, तो उसे कोई पसंद नहीं करता।

            इस तथ्य को कोयल और कौए के उदाहरण द्वारा सबसे भली प्रकार से समझा जा सकता है। दोनों देखने में समान होते हैं, परंतु कौए की कर्कश आवाज और कोयल की मधुर बोली दोनों की अलग-अलग पहचान बनाती है, इसलिए कौआ सबको अप्रिय और कोयल सबको प्रिय लगती है।

            "कौए की कर्कश आवाज और कोयल की मधुर वाणी सुन।
            सभी जान जाते हैं, दोनों के गुण।।

            मनुष्य अपनी मधुर वाणी से शत्रु को भी अपना बना सकता है। ऐसा व्यक्ति समाज में बहुत आदर पाता है। विद्वानों व कवियों ने भी मधुर वचन को औषधि के समान कहा है। मधुर बोली सुनने वाले व बोलने वाले दोनों के मन को शांति मिलती है। इससे समाज में प्रेम व भाईचारे का वातावरण बनता है। अतः सभी को मीठी बोली बोलनी चाहिए तथा अहंकार व क्रोध का त्याग करना चाहिए।

            प्रश्न 11- 'विज्ञापन में हिंदी भाषा' पर एक लेख लिखिए। (विस्तृत उत्तरीय)

              उत्तर- विज्ञापन में हिंदी भाषा

              यदि हम विज्ञापनों की भाषा के रूप में हिंदी भाषा के स्वरूप का विश्लेषण करें तो यह आज सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा माध्यम है। हालांकि वर्तमान समय में विज्ञापन की भाषा के रूप में हमें हिंदी और अंग्रेजी मिश्रित हिंदी भाषा हिंग्लिशके ज्यादा दर्शन होते हैं। नई पीढ़ी के लोग इसे बखूबी समझते हैं और पसंद भी करते हैं। शायद इस कारण भी आज विज्ञापनी हिंदी की लोकप्रियता खूब बढ़ी है।

              विज्ञापनों का प्रभाव हर वर्ग पर समान रूप से है। हिंदी भी प्रत्येक वर्ग के लोगों की और विशेष रूप से भारत में जनसंचार की प्रमुख भाषा माध्यम है। अतः भविष्य में निश्चय ही हिंदी का विकास विज्ञापनों की भाषा के रूप में और भी तीव्र गति से होगा। भारत में नहीं बल्कि इसका प्रभुत्व संपूर्ण विश्व बाजार पर दिखाई देगा।

              हिंदी का बढ़ता वर्चस्व

              वर्तमान समय में भूमंडलीकरण के बढ़ते दायरे के बीच हिंदी का वर्चस्व देश में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ता जा रहा है। आज चीनी भाषा के बाद हिंदी विश्व की दूसरी लोकप्रिय भाषा है। ऐसे में विज्ञापनों की भाषा के रूप में हिंदी में असीम संभावनाएं हैं। हिंदी में विभिन्न भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करने और उसे आत्मसात करने की अदभुत शक्ति है, इसलिए शायद यह इतनी तेजी से लोकप्रियता के हर स्तर पर खरी उतरती जा रही है। विज्ञापनों की भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य निस्संदेह उज्ज्वल है। हालांकि हमें इसकी कुछ खामियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे कि भविष्य में हिंदी विज्ञापनों की सर्वाधिक उपयुक्त और लोकप्रिय भाषा माध्यम बन सके।

              वैश्वीकरण से फायदा

              पिछले 20-25 सालों में वैश्वीकरण की आंधी से कोई नहीं बच सका है। हमारी रोज की जिंदगी से लेकर बड़े कॉरपोरेट निर्णय तक वैश्वीकरण से प्रभावित है। पर जहाँ तक हिंदी की बात है, तो वैश्वीकरण से इसे गजब का फायदा मिल रहा है। आज की तारीख में बड़े-बड़े राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ब्रांड हिंदी भाषा में अपने विज्ञापन प्रसारित कर रहे हैं।

              आज औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उपभोग्य वस्तुओं का उत्पादन बड़ी मात्रा में हो रहा है, जिनके प्रचार-प्रसार के लिये विज्ञापन ही सहारा है। फिल्म, रेडियो, टेलीविजन, पोस्टर्स, हैंडबिल, साइनबोर्ड, सिनेमा स्लाइड और बैलून आदि अनेक माध्यमों से विज्ञापन होता है। उत्पादित वस्तु के ब्रांड को लोकप्रिय बनाना तथा कंपनी के नाम को जनता के मन-मस्तिष्क में जमाने का कार्य विज्ञापन ही करता है।

              इस रूप में विज्ञापन की भाषा के रूप में हिंदी आज अपने सशक्त रूप में है। हिन्दी जनसंचार माध्यमों पर बहुत तेजी से लोकप्रिय हुई है। आने वाले समय में इसकी लोकप्रियता और तेजी से बढ़ेगी। देश-दुनिया के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबार और सर्वाधिक देखे जाने वाले टीवी चैनल हिंदी के ही है। तो फिर इसमें बिल्कुल शक की कोई गुंजाइश नहीं कि आखिर जिस भाषा का विस्तार इतना अधिक है तो विज्ञापनी हिंदी के रूप में इसे और अधिक अवसर मिलेंगें ही।

              हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने के बाद विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा हिन्दी को विज्ञापन की भाषा के रूप में अधिक महत्व दिया जाने लगा। स्टारप्लस जैसे अंग्रेजी के चैनल हिंदी को अपनाने पर मजबूर हुए। हालांकि जनसंचार माध्यमों की भाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग में कुछ समस्याएं भी उत्पन्न हुई हैं, लेकिन यदि कुछ सावधानियाँ बरती जाए तो इनका सहज ही निराकरण किया जा सकता है।

              हिंदी के साथ समस्याएं

              हिंदी में विज्ञापन के लिए मौलिक लेखन के बजाय अनुवाद का सहारा लेना पड़ता है। नवीन विषयों के विज्ञापनों के लिए हिंदी पर अंग्रेजी भाषा की छाया बरकरार है। पारिभाषिक शब्दों का अपरिचय तथा अप्रचलन भी हिंदी भाषा की एक समस्या हैं। वर्तनी की विभिन्नता या अर्थ भिन्नता की समस्या भी देखी जा सकती है। निश्चित अपरिवर्तनीय विज्ञापन की शब्दावली का अभाव भी देखा जा सकता है। अंग्रेजी में भाव की अभिव्यक्ति के लिए एक ही शब्द का प्रयोग होता है, लेकिन हिंदी में पर्यायवाची रूप की वजह से भिन्न-भिन्न जगहों पर भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग दिखाई देता है, जैसे- अंग्रेजी शब्द 'लव' के लिए हिंदी में प्रेम, प्यार, मुहब्बत, इश्क, स्नेह, प्रणय आदि पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग प्रचलित है।

              इन समस्याओं के निराकरण के लिए हमें अपनी हठधर्मिता को छोड़ नवीन विचारों को अपनाना होगा। हमें लोकप्रचलित तथा व्यवहारिक शब्दों को ग्रहण करते हुए एक नई हिन्दी का स्वागत विज्ञापनी हिन्दीके रूप में करना होगा, ताकि इसकी लोकप्रियता बढ़ती रहे।

              विज्ञापन में हिंदी के प्रयोग के कुछ उदाहरण

              • विज्ञापन में उपभोक्ता (कंज्यूमर) का ध्यान खींचने के लिए हिंदी के ही शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

              - छूट, धमाका

              • विज्ञापन में उपभोक्ता (कंज्यूमर) का ध्यान खींचने के लिए हिंदी के साथ अंग्रेजी के शब्दों को भी बहुत मिलाया जाता है। जैसे-

              - हंगरी क्या (डोमिनोज पिज्जा), 

              - ठंडा-ठंडा कूल-कूल (नवरत्न तेल)

              • विज्ञापनों को आसान, कर्णप्रिय और पठनीय बनाने में कविता का प्रयोग भी होता है। जैसे-

              - दूध सी सफेदी निरमा से आए, रंगीन कपड़ा भी धुल-धुल जाए...सबकी पसंद निरमा वाशिंग पाउडर निरमा।

              • विज्ञापन को आसान और स्मरणीय बनाने में भी हिंदी को महारत हासिल है। जैसे-

              - ठंडा मतलब कोका कोला, कुछ मीठा हो जाए।

              • हिंदी के जरिये विज्ञापन की भाषा में सरलता के साथ ही साधारणता में असाधारणता का प्रयोग भी किया जाता है। जैसे-

              - आपकी शान, पड़ोसी की जले जान (ओनिडा टीवी)

              - दाग अच्छे हैं (सर्फ एक्सल) दोनों में नकारात्मक टोन, शब्द सरल लेकिन अर्थ सामान्य से कहीं अधिक।

              - सीधी बात बाकी सब बकवास (स्पराइट)

              • विज्ञापन में बात को बढ़ाचढ़ाकर कहने के लिए हिंदी के विशेषणों की उच्चतम अवस्था का प्रयोग भी खूब होता है। जैसे-

              - सबसे बेहतर

              - सबसे कम कीमत वाला

              - सबसे अधिक बिकने वाला

              - भारत का एकमात्र

              - सबसे सस्ता

              - नया

              - बेहतरीन

              • विज्ञापन की भाषा को विश्वसनीय बनाने में भी हिंदी योगदान देती है। जैसे-

              - पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें (घड़ी डिटर्जेंट)

              • विज्ञापन के भाषा उपभोक्ता को खरीदारी के लिए बेचैन करने का भी प्रयास करती है। इसके लिए विशेष प्रकार के हिंदी शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

              - जल्दी कीजिए

              - ऑफर सिर्फ़ सीमित समय तक

              - जल्द घर ले आइए

              - अब आसान किश्तों पर

              - जो बीवी से करे प्यार, प्रेस्टीज से कैसे करे इंकार  

              • विज्ञापनों की भाषा में हिंदी के अलंकरों का प्रयोग भी बहुतायत में होता है। जैसे-

              1-  अनुप्रास दिल मांगे मोर, जियो जी भर के

              2-  पुनरूक्ति खाए जाओ, खाए जाओ, यूनाईटेड के गुण गाए जाओ

              3- यमक अलंकार छोड़ो लाइन, हो जाओ ऑनलाइन (बैंक ऑफ बड़ौदा)

              4- उपमा अलंकार दूध सी सफेदी निरमा से आए रंगीन कपड़ा भी खिल-खिल जाए।

              5- रूपक अलंकार सुपर निरमा, माई सुपरमैन, मच्छरों का यमराज

              6- विरोधाभास अलंकार अप्रैल की धूप में रजाई का लुत्फ़ 

              7- अतिश्योक्ति अलंकार दर्द मिटाए चुटकी में

              8- मानवीकरण अलंकार- क्या आपके बाल भी हँसते खिलखिलाते हैं?

              • विज्ञापनों में हिंदी की तुकबंदी का भी बहुत प्रयोग होता है।

              - हाय कुंदन सी दमकी हमारी बन्नो, रूप की आज रानी बनी है बन्नो

              - आता नहीं है दाढ़ी बनाना, कटे जले तो बोरोप्लस लगाना

              • विज्ञापनों की भाषा में समानांतरता का भी प्रयोग किया जाता है। यह ध्वनि की समानांतरता भी हो सकती है और अक्षरों, शब्दों व वाक्यों की भी। जैसे-

              1-ध्वनि समानान्तरता कैच का कोई मैच नहीं (कैच मसाले)

              2-आक्षरिक समानान्तरता अब जहाँ आम बार गलेगा, नया विम बार चलेगा और चलता रहेगा

              3- शाब्दिक समानान्तरता- असली आँवला, डाबर आँवला

              4- वाक्यपरक समानान्तरता साठ साल के बूढ़े या साठ साल के जवान

              • विज्ञापनों में विचलन से भी आकर्षण पैद किया जाता है। विचलन भी ध्वनि, शब्द और वाक्य का हो सकता है। जैसे-

              1-ध्वनिपरक विचलन

              - आह से आहा तक (मूव क्रीम)

              - उषा है तो आशा है (उषा पंखे)

              2-शब्द स्तरीय विचलन

              - रिन की चमकार

              3- वाक्यस्तरीय विचलन

              - शुद्ध सौम्य लक्स, फिल्मी सितारों का सौन्दर्य साबुन

              - औरत के हर रूप को उजागर करे हीरा (इरा डायमंड)

              • विज्ञापनों में हिंदी के मुहावरों और लोकोक्तियां का प्रयोग भी खूब देखने को मिलता है। जैसे-

              - कामयाबी आपके कदम चूमेगी

              - आपकी खुशियों में चार चांद लगाए

              - आपकी ज़िंदगी रोशन कर दे

              - आंखों का तारा

              - बेटा मन में लड्डू फूटा (कैडबरी शॉट्स)
              - घर-घर का चिराग (लूमिनस इन्वर्टर)
              - किए कराए पर खांसी फेर दी (टोरेक्स कफ़ सिरप)

              - कर लो दुनिया मुट्ठी में (रिलायंस मोबाइल)
              - डर के आगे जीत है (माउंटेन डियू)
              - दिल तो जेब में रखा है (सैमसंग गुरु)

              निष्कर्ष

              हिंदी को आधुनिक भाषाओं के बीच प्राणभाषा का दर्जा दिया जा सकता है, क्योंकि यह अत्यंत ही वैज्ञानिक भाषा है और इसका बाजार निरंतर विकासमान है। आज हिंदी बाजार की मांग बन चुकी है। आज बाजार के लिए जितना महत्व विज्ञापन का है शायद उतना ही महत्व उन विज्ञापनों की भाषा के रूप में हिंदी का भी है। विज्ञापन और भाषा का दिलचस्प रिश्ता है। विज्ञापन की भाषा में ऐसा लचीलापन है कि गतिशीलता और संभावना की अनचीन्ही परतें दिखाई पड़ती हैं। हिंदी भाषा भी एक लचीली भाषा है। इसलिये विज्ञापन की भाषा के रूप में हिंदी भाषा के प्रयोग में अपार संभावनाएं हैं।


              प्रश्न 12- 'मीडिया की स्वतंत्रता' पर एक सारगर्भित लेख लिखिए। (विस्तृत उत्तरीय)

                उत्तर- मीडिया की स्वतंत्रता

                मीडिया एक स्वस्थ लोकतंत्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लोकतंत्र की रीढ़ है। मीडिया हमें दुनिया भर में हो रही विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों से अवगत कराता है। यह एक दर्पण की तरह है, जो हमें जीवन के नंगे सच और कठोर वास्तविकताओं को दिखाता है या दिखाने का प्रयास करता है।


                स्वतंत्र मीडिया का महत्व


                स्वतंत्र मीडिया विचारों की मुक्त चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, निर्णय लेने की अनुमति देता है और परिणामस्वरूप समाज को सशक्त करता है - विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में।


                लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। जनता की आवाज़ होने के आधार पर स्वतंत्र मीडिया, उन्हें राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है।


                स्वतंत्र मीडिया के साथ, लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करके अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त हो। अतः मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, अन्य तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।


                मीडिया के अभाव में आम जनता यह नहीं जान सकती है कि संसद में किस तरह के बिल और अधिनियम पारित किए जाते हैं, और समाज में उनके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं। अगर मीडियाकर्मी अपनी आंखें बंद कर लेते हैं तो सरकारी अधिकारी वही करेंगे जो वे चाहते हैं, इसलिए मीडिया सरकारी गतिविधियों और आम जनता के बीच बहुत महत्वपूर्ण और निष्पक्ष भूमिका निभाता है। इस हद तक कहा जाता है कि मीडिया की स्वतंत्रता गणतांत्रिक सरकार की सफलता की गारंटी है।


                मीडिया निस्संदेह विकसित हुआ है और समय के साथ अधिक सक्रिय हो गया है। यह केवल मीडिया है जो चुनाव के समय नेताओं को उनके अधूरे वादों के बारे में याद दिलाता है। चुनावों के दौरान टीवी न्यूज़ चैनलों का अत्यधिक कवरेज लोगों को, विशेष रूप से निरक्षरों को, सत्ता के लिए सही व्यक्ति का चुनाव करने में मदद करता है। यह राजनेताओं को सत्ता में बने रहने के लिए अपने वादों को पूरा करने के लिए मजबूर करता है।


                मीडिया लोकतांत्रिक प्रणाली में खामियों को भी उजागर करता है, जो अंततः सरकार को खामियों को दूर करने और प्रणाली को अधिक जवाबदेह, उत्तरदायी और नागरिक-अनुकूल बनाने में मदद करता है। मीडिया के बिना लोकतंत्र पहियों के बिना एक वाहन की तरह है।

                 

                सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोकतंत्र मुख्य रूप से स्वतंत्र बातचीत और बहस पर आधारित है। इस व्याख्या से स्पष्ट है कि स्वतंत्र विचार, चर्चा और बहस का काम मीडिया ही करता है। यदि मीडिया नहीं होगा तो स्वतंत्र विचार, चर्चा, बहस आदि संभव नहीं हैं। इसलिए मीडिया लोकतंत्र का एक बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ है और यह सरकार व समाज के बीच में पुल का काम करता है।


                भारतीय संविधान और मीडिया की स्वतंत्रता


                भारतीय संविधान में प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता का कोई सीधा उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन संविधान के भाग तीन में मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता के अधिकार की बात कही गई है। चूंकि स्वतंत्रता के अधिकार को अभिव्यक्ति की आजादी की तरह देखा जाता है इसलिए अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को ही प्रेस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है। न्यायालयों ने भी समय-समय पर इस बात की पुष्टि की है। इसीलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समकक्ष होने के कारण प्रेस की स्वतंत्रता भी एक मौलिक अधिकार है।

                 

                हालांकि कुछ परिस्थितियां ऐसी हैं जिनके तहत मीडिया पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया जा सकता है। संविधान में युक्तियुक्त शब्द की कोई परिभाषा नहीं दी गई है। इसकी व्याख्या का निर्णय न्यायालयों पर छोड़ दिया गया है। सर्वोच्च न्यायलय ने संविधान के प्रावधानों के तहत निम्नलिखित मामलों में मीडिया पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने को तर्कसंगत ठहराया है।

                ·       राष्ट्र की प्रभुता और अखंडता पर खतरे की स्थिति में

                ·       राज्य की सुरक्षा से जुड़ी परिस्थितियों में

                ·       विदेशी राज्यों के साथ संबंध के मामलों में

                ·       सार्वजनिक व्यवस्था के सुचारू संचालन करने के लिए

                ·       शिष्टाचार/सदाचार के मामलों में

                ·       न्यायालय की अवमानना की स्थिति में

                ·       मानहानि से जुड़े मामलों में

                ·       अपराध को उकसाने की स्थिति पाए जाने पर

                 

                एक प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए या प्रेस पर कुछ प्रतिबंध भी होने चाहिए? प्रेस या मीडिया के मामले में यदि सरकार को पूर्ण प्रतिबंध की छूट दे दी जाए तो सरकार जरा सी आलोचना पर प्रेस का मुंह बंद कर सकती है। इसी के साथ यदि प्रेस को बिल्कुल स्वतंत्र छोड़ दिया जाए तो सार्वजनिक व्यवस्था भंग हो सकती है, अराजकता फैल सकती है। इसीलिए न तो तो प्रेस या मीडिया पर पूर्ण प्रतिबंध उचित है और न ही मीडिया को खुली छूट दिया जाना उचित है। दोनों में संतुलन जरूरी है।


                यह संतुलन कैसा हो, इसका निर्णय न तो सरकार ही कर सकती है और न ही मीडिया। यह काम तो कोई तीसरा पक्ष ही कर सकता है और वो तीसरा पक्ष न्यायालय है। संविधान में भी प्रेस की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के समकक्ष माना गया है, लेकिन इसी के साथ संविधान में कहा गया है कि मौलिक अधिकारों के मामले में कुछ विशेष परिस्थितियों में युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। लेकिन संविधान में युक्तियुक्त की परिभाषा नहीं दी गई है। युक्तियुक्त की व्याख्या करने का फैसला न्यायालयों पर छोड़ दिया गया है। इसीलिए प्रेस की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंध के मामले में अंतिम निर्णय न्यायालय ही करते हैं।


                होना यह चाहिये कि सरकारों को संविधान में दिये गए प्रावधानों को छोड़कर, अन्य सभी मामलों में प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए और प्रेस को भी स्वयं के लिये बनी आचार संहिता का पालन करना चाहिए। ऐसा करके ही हम प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में आदर्श स्थिति की तरफ बढ़ सकते हैं।


                प्रश्न 13- न्यू मीडिया की भाषा किस हद तक सार्थक है, स्पष्ट कीजिये। (विस्तृत उत्तरीय)

                उत्तर- न्यू मीडिया की भाषा की सार्थकता

                न्यू मीडिया की भाषा के संबंध में हमें दो पक्ष देखने को मिलते हैं। एक न्यू मीडिया के जरिये हिंदी के तेजी से आगे बढ़ने का पक्ष है तो दूसरा पक्ष हिंदी में तेजी से हो रहे संक्रमण का है।

                पहले पक्ष से शुरुआत करते हैं। यह एक सुखद बात है कि न्यू मीडिया के विभिन्न मंचों पर हिंदी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। जब इंटरनेट ने भारत में पांव पसारने शुरू किए तो यह आशंका व्यक्त की गई थी कि कंप्यूटर के कारण देश में फिर से अंग्रेज़ी का बोलबाला हो जाएगा। किंतु यह धारणा निर्मूल साबित हुई है और आज हिंदी वेबसाइट तथा ब्लॉग न केवल धड़ल्ले से चले रहे हैं बल्कि देश के साथ-साथ विदेशों के लोग भी इन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा चैटिंग कर रहे हैं। इस प्रकार इंटरनेट भी हिंदी के प्रसार में सहायक होने लगा है।

                हिंदी आज सोशल मीडिया में विविध रूपों से विकसित हो रही है‌। सोशल मीडिया में हिंदी को वैश्विक मंच मिला है जिससे हिंदी की पताका पूरे विश्व में लहरा रही है। आज फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप पर अंग्रेजी में लिखे गये पोस्ट या टिप्पणियों की भीड में हिंदी में लिखी गई पोस्ट या टिप्पणियाँ प्रयोगकर्ताओं को ज्यादा आकर्षित करती हैं।

                सोशल मीडिया में हिंदी भाषा का वर्चस्व का प्रमुख कारण यह है कि हिंदी भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त एवं वैज्ञानिक माध्यम है। संबंधित पोस्ट के भावों को समझने में असुविधा नहीं होती है। लिखी गई बात पाठक तक उसी भाव में पहुंचती है, जिस भाव से लिखा जाता है। सोशल मीडिया पर मौजूद हिंदी का ग्राफ दिन दो गुनी रात चौगुनी आसमान छू रहा है। यह हिंदी भाषा की सुगमता, सरलता और समृद्धता का ही प्रतीक है।

                हिंदी भाषा के इस सोशल मीडिया ने अपनी ताकत से सरकारों को अपने फैसलों, नीतियों और व्यवहारों की ओर ध्यान आकर्षित करवाया है। इन मंचों पर सार्वजनिक विमर्श की गुणवत्ता बढी है तथा लोगों का स्तर हिंदी भाषा में बेहतर हुआ है। हिंदी भाषा यू-ट्यूब पर भी फल-फूल रही है।

                एक रिपोर्ट के अनुसार, बहुद जल्द स्थानीय भाषा का इंटरनेट यूजर बेस अंग्रेजी भाषा के डिजिटल उपभोक्ताओं को पीछे छोड़ देगा और इस परिवर्तन का नेतृत्व सोशल मीडिया यानी न्यू मीडिया कर रहा है।

                अब दूसरे पक्ष की बात करते हैं। मीडिया हो या न्यू मीडिया, वह भाषा के साथ अपने तरह के प्रयोग करता रहा है। न्यू मीडिया की भाषा साहित्यिक भाषा की तरह अलंकरण का बोझ लेकर नहीं चलती। न ही वह अकादमिक भाषा की तरह बौद्धिकता का बोझ ढोती है। लेकिन कागज और होंठों के बीच की दूरी कम करने के चक्कर में न्यू मीडिया का भाषा-प्रयोग कुछ अलग ही परिणाम दे रहा है।

                कई लोगों को भाषा एक साधन मात्र लगती है और उस पर बारीकिया निकालनां एक बेकार का काम लगता है। लेकिन मीडिया या न्यू मीडिया में भाषा का सवाल बहुत जरूरी हो जाता है, क्योंकि भाषा हमारे संस्कार गढ़ रही होती है।

                शब्द की अपनी धुरी होती है और उस धुरी से दूर जाना खबर की विश्वसनीयता को भी किसी हद तक कम करता है। यह वैसा ही है जैसे गणित में दशमलव का या ड्रग्स के प्रिस्क्रिप्शंस में ग्रेंस का छोटा सा अंतर, जो लगता तो महत्वहीन है, लेकिन थोड़ा सा भी अंतर या तो रॉकेट के प्रक्षेपण को विफल कर देगा या किसी मरीज की जान पर बन आएगी।

                न्यू मीडिया में और परंपरागत मीडिया में भी हमें वर्णशंकर भाषा या खिचड़ी भाषा की बहुतायत देखने को मिलती है। कहा जाता है कि शब्द के साथ खेल तो कवि भी करता है, लेकिन शब्द के साथ खेल अलग चीज है जबकि सच्चाई से खिलवाड़ करना और बात हो जाती है।

                वर्तमान समय में न्यू मीडिया और मीडिया की भाषा खिचड़ी से भी आगे बढ़कर चटनी भाषा हो गई है। इसे तात्कालिक मौज मजे के लिये प्रस्तुत किया गया फास्ट फूड कह सकते हैं।

                आज हमें हिंदी अखबारों और वेबसाइट्स पर विभिन्न स्तंभों के शीर्षक अंग्रेजी में लिखे मिलते हैं। जैसे- यूथ गैलरी, फर्स्स पर्सन आदि। आज न्यू मीडिया पर इस तरह के वाक्य धड़ल्ले से लिखे और बोले जा रहे हैं- वह शू परचेस करने के लिए मार्केट गया। कुछ विद्वानों ने इसे ‘हिंडी’ का नाम दिया है।

                इसे हिंदी में हो रहा मिश्रण नहीं कह सकते। इसे हिंदी में हो रहा संक्रमण ही कहा जायेगा। कुछ विद्वान कह रहे हैं कि यह ‘हिंडी’ आधुनिक हिंदी मानस में पड़ गई किसी दरार, किसी विभाजन या किसी विभक्ति का प्रतीक बनकर सामने आई है। आज भारतीय समाज में दिखावे और आंडबर का जोर है। ‘हिंडी’ के जरिये शायद हम आम ग्रामवासी भारतीयों से खुद को अलग और विशिष्ट दिखाने की चाह में ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।

                ऐसा लगता है कि यदि अर्थव्यवस्था ग्बोबल हो जाने की हड़बड़ी में है तो शब्द व्यवस्था भी ग्लोबल हो जाने की उसी हड़बड़ी के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही है। यह भाषा बहुत आगे तक जाकर मार कर रही है और अब कई साहित्यिक पत्रिकाओं में भी ऐसी दूषित हिंदी देखने को मिल जाती है।

                न्यू मीडिया और परंपरागत मीडिया की भाषा युद्ध और संग्राम की भाषा भी बन गई है। इस तरह की भाषा के जरिये मीडिया जाने-अनजाने ही देश में एक प्रकार की अस्थिरता रचने का काम करता है। आधुनिक मीडिया में संगीत में भी विश्वयुद्ध होता है। यहां क्रिकेट में आग लगती है और लगभग हर चीज में बवाल होता है। यहां क्रिकेट जैसे जेंटलमैन खेल को घमासान की तरह दर्ज करवाया जाता है। यह भाषा एक विचलित, डांवाडोल, डगमग, असहज और अशांत समाज की तस्वीर प्रस्तुत करती है।

                यदि न्यू मीडिया भाषा से खिलवाड़ करता है तो वह सच्चाई से खिलवाड़ करने के समान है। भाषा से खिलवाड़ होता है तो भाषा अपने लिए अश्रद्धा का माहौल खुद तैयार करती है।

                इस प्रकार हम सकते हैं कि हमें न्यू मीडिया की भाषा को, खासकर हिंदी भाषा को संक्रमण से बचाना होगा। तभी न्यू मीडिया के मंचों पर हिंदी का विस्तार सार्थक सिद्ध हो सकेगा।

                - लव कुमार सिंह

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