अंधभक्ति गलत है तो अंधविरोध भी सही नहीं है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे में सुरक्षा में चूक का मामला
दावा- फिरोजपुर में जहां किसानों ने रास्ता रोका वह क्षेत्र
राज्य सरकार की पुलिस के अंतर्गत आता ही नहीं क्योंकि मोदी सरकार की ‘दखलदांजी नीति’ के कारण हाल
ही में बॉर्डर क्षेत्र के 50 किमी क्षेत्र
को BSF की निगरानी में दे दिया गया है। और वो रास्ता बॉर्डर के
10 किमी दूरी पर है तो क्या केंद्र सरकार मानती है कि BSF ने PM के सुरक्षा
क्षेत्र की निगरानी नहीं की और यदि ऐसा है तो BSF के मुखिया होने के नाते गृहमंत्री इस्तीफा देंगे?
तथ्य- बार्डर क्षेत्र के 50
किलोमीटर क्षेत्र में बीएसएफ को यह अधिकार दिया गया है कि वह शक होने पर किसी
व्यक्ति से पूछताछ और गिरफ्तारी कर सकती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि राज्य पुलिस
और थाने सीमा से 50 किलोमीटर तक समाप्त हो गए हैं। 50 किलोमीटर छोड़िए, किसी राज्य
में कहीं भी किसी अभियुक्त को जाकर सीबीआई गिरफ्तार कर लेती है तो इसका अर्थ यह
नहीं है कि उस राज्य में सुरक्षा की जिम्मेदारी सीबीआई की हो जाती है।
दावा- प्रधानमंत्री की सुरक्षा का
जिम्मा एसपीजी का है। वही सब कुछ तय करती है। ऐसे में एसपीजी के अधिकारियों पर
कार्रवाई होनी चाहिए।
तथ्य- प्रधानमंत्री की सुरक्षा से
जुड़ी ब्लू बुक कहती है कि निकट के दायरे में प्रधानमंत्री की सुरक्षा का जिम्मा
जरूर एसपीजी निभाती है, लेकिन पीएम की सुरक्षा की बाकी सारी जिम्मेदारी उस राज्य सरकार
की होती है, जहां पीएम दौरा करते हैं। व्यवहार में भी पीएम के साथ एसपीजी के 20-25
लोग ही होते हैं। 20-25 लोग दौरे की योजना, निरीक्षण, पूर्व तैयारी आदि तो करते
हैं और पीएम के निकट रहकर निगरानी करते हैं, लेकिन यदि राज्य सरकार की पुलिस सहयोग
न करे तो क्या 20-25 लोग किसी दौरे में प्रधानमंत्री की सुरक्षा करने में सक्षम हो
सकते हैं? बिल्कुल नहीं। फिर भी यदि जांच में एसपीजी के अधिकारियों के खिलाफ कुछ
मिलता है तो जरूर कारर्वाई होनी चाहिए।
दावा- प्रधानमंत्री
को हैलीकॉप्टर से 112 किलोमीटर की
दूरी तय करनी थी मगर उन्होंने अचानक से कार में जाने का फैसला आखिर किसकी सलाह पर
लिया और क्या 112
किमी सड़क को बिना पूर्व सूचना के सुरक्षाकर्मियों
द्वारा घेर पाना संभव है, क्योंकि केंद्र सरकार भी जानती है कि पंजाब में किसान
मोदी के विरोध में सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
तथ्य- पीएम के
दौरे से पहले हमेशा ही वैकल्पिक रूटों की तैयारी होती है। यहां भी थी और जिस सड़क
पर पीएम का रास्ता रोका गया, उस सड़क पर दौरे से पहले रिहर्सल भी की गई थी। यानी
यह पहले से तय था कि जरूरत पड़ने पर पीएम इस मार्ग से जा सकते हैं। अभी हाल ही में
अपने कानपुर दौरे के दौरान पीएम मौसम खराब होने के कारण कानपुर से लखनऊ (करीब 96
किलोमीटर) सड़क मार्ग से गए। इसी प्रकार वह मेरठ के दौरे पर मौसम खराब होने के कारण
दिल्ली से मेरठ सड़क मार्ग से गए और दिल्ली वापस लौटे।
दावा-
फिरोजपुर की रैली में भीड़ नहीं थी, इसलिए यह ड्रामा रचा गया।
तथ्य-
फिरोजपुर की रैली के जो फोटो दिखाई जा रहे हैं, उनसे यह बिल्कुल भी नहीं पता चलता
कि वे रैली शुरू होने से पहले के हैं या रैली स्थगित होने के बाद के। फोटो में
टाइमिंग का बड़ा महत्व होता है। फिर मौसम भी खराब था। बारिश के बीच जरूरी नहीं कि
वांछित भीड़ जुटे। इसके अलावा यदि रैली में भीड़ नहीं थी तो रैली स्थल पर जाने
देकर विरोधियों के पास मोदी की फजीहत कराने का और भी अच्छा मौका था। उनके पास मौका
होता ऐसा ऐतिहासिक फोटो दुनिया को दिखाने का कि मोदी भाषण दे रहे हैं और उन्हें सुनने
वाले गिने-चुने लोग हैं। फिर ऐसा मौका विरोधियों ने क्यों गवां दिया?
दावा- यह सब
प्रचार पाने के लिए किया गया ड्रामा था।
तथ्य- यदि यह ड्रामा था तो क्या इसमें पंजाब पुलिस के डीजीपी भी शामिल थे? उन्हें पीएम की अगवानी में एयरपोर्ट पर होना था लेकिन वे नहीं थे। यदि यह ड्रामा था तो क्या इसमें सीएम चन्नी भी शामिल थे, क्योंकि फ्लाईओवर पर पीएम के अटके होने के दौरान उन्हें फोन किया गया, लेकिन वे फोन लाइन पर नहीं आए। यदि यह ड्रामा था तो क्या इसमें पंजाब पुलिस भी शामिल थी, क्योंकि उसी ने प्रदर्शनकारियों को जानकारी दी कि इस मार्ग से पीएम जा रहे हैं और फिर प्रदर्शनकारियों को हटाने की पुख्ता कोशिश भी नहीं की। ये सब तथ्य तो इसे ड्रामा साबित नहीं करते।
दावा- राजा प्रजा से, अपने ही लोगों से ही डरने लगे तो उस देश की हालत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। राजा प्रजा से डरने लगे तो कैसी 56 इंची छाती?
तथ्य- इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले उनके सुरक्षा गार्ड भी तकनीकी रूप से देश की प्रजा ही थे। राजीव गांधी की हत्या करने वाले भी प्रजा ही थे। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के हत्यारे भी प्रजा ही थे। कहने को आप प्रजा कह दें लेकिन प्रजा में शामिल हर व्यक्ति एक सा नहीं होता। इसमें सज्जन लोग होते हैं तो अपराधी, हत्यारे भी होते हैं। दिल्ली में कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन करने वाले लोग भी इस देश की प्रजा थे, लेकिन उन्हीं में से कुछ ने कैसे किस नृशंसता से सरेआम हत्याएं कीं, यह हम सबने देखा। ...तो यह कह देना बिल्कुल फालतू की बात है कि 56 इंची छाती है तो इतनी सुरक्षा का तामझाम करके क्यों चलते हो? आज की दुनिया में किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष के लिए ऐसा प्रश्न मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है।
दावा- पीएम पर
कोई हमला नहीं हुआ, ना ही हमले की कोशिश हुई, फिर सुरक्षा में चूक कैसी?
तथ्य- क्या हमला
होता तभी सुरक्षा में चूक मानी जाती? क्या पीएम को कोई नुकसान पहुंचता, तभी
सुरक्षा में चूक मानी जाती। यह बहुत ही खतरनाक सोच है। प्रदर्शनकारियों की तरफ से
हमले की बात को छोड़ भी दें तो 20 मिनट में पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में उस फ्लाइओवर जैसी जगह पर कुछ भी हो सकता
था। फ्लाईओवर के नीचे से कोई विस्फोट हो सकता था। पाकिस्तान सीमा बिल्कुल नजदीक
है। वहां से ड्रोन के जरिये हमला हो सकता था। नहीं हुआ तो अच्छा हुआ, लेकिन हो
जाता तो?
कुल मिलाकर
यही निवेदन करना चाहूंगा कि अंधविरोध में तथ्यों से मुंह ना मोड़ें। मोदी के बारे
में न सोचकर देश के प्रधानमंत्री के बारे में सोचें और फिर स्थितियों का आंकलन
करें।
और इससे पहले
कि आप मुझ पर अंधभक्ति का ठप्पा लगा दें, आपको बता दूं कि मोदी का ‘जिंदा लौट आया’
वाला वक्तव्य मुझे भी ज्यादा पसंद नहीं आया। मोदी चुप रहते और कड़ी कार्रवाई करते
तो ज्यादा अच्छा होता। पंजाब में बहुत गड़बड़ है, मोदी को नापसंद करने वाली पार्टी
की सरकार है, लेकिन फिर भी जब मुखिया ही अपने बच्चों की शिकायत करने लगता है तो
लोग बच्चों को नहीं मुखिया को ही प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हैं।
इसके अतिरिक्त इस समय चुनाव सिर पर हैं और राजनीति चरम पर है। कांग्रेस इसे पंजाब को बदनाम करने की साजिश कहेगी। किसानों को बदनाम करने की साजिश कहेगी। राष्ट्रपति शासन जैसी कोई कार्रवाई हुई तो इसे कथित दलित मुख्यमंत्री चन्नी के खिलाफ साजिश कहा जायेगा। कुल मिलाकर जमकर राजनीति होने वाली है। और इस राजनीति में पीएम की सुरक्षा का मुद्दा गुम होने की पूरी-पूरी आशंका है। जो भी हो, राजनीति अपनी जगह है, लेकिन एक नागरिक के रूप में हमें तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए और ना ही उन्हें अपनी पसंद-नापसंद के अनुसार तोड़ना-मरोड़ना चाहिए।
- लव कुमार सिंह
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